क्या आपने कभी किसी फिल्म को बिना आवाज के साथ देखने की कोशिश की है? या फिर कल्पना करें कि बाहुबली फिल्म में युद्ध के दृश्यों के दौरान सिर्फ किरदारों के संवाद की आवाज आए और अन्य आवाजें जैसे घोड़ों की चाल, तलवारों की आवाज या फिर बारिश की आवाज न हो तो? क्या तब भी फिल्म उतनी ही रोचक और दिलचस्प रहेगी? बिल्कुल भी नहीं। क्योंकि बिना आवाज और साउंड इफेक्ट्स के पर्दे या स्क्रीन पर कोई भी दृश्य अधूरा ही लगेगा। क्योंकि जिस तरह कैमरा ‘लार्जर दैन लाइफ’ होता है वैसे ही फिल्मों में आवाज भी ऐसी होनी चाहिए जो इस प्रभाव को कायम रखे। और इस काम को बखूबी पूरा करते हैं फौली आर्टिस्ट।
फौली आर्ट (Foley Art) का मतलब होता है दैनिक जीवन में इस्तेमाल होने वाली चीजों का प्रयोग करके किसी भी फिल्म, सीरीज या शो के लिए आवाजें (साउंड इफ़ेक्ट) बनाना। यह काम शूटिंग खत्म होने के बाद, पोस्ट प्रोडक्शन के दौरान किया जाता है। जो कलाकार यह काम करते हैं, उन्हें फौली आर्टिस्ट कहते हैं।
आज फिल्म इंडस्ट्री के एक मशहूर फौली आर्टिस्ट, करण अर्जुन सिंह से हम आपको मिलवा रहे हैं। 12 साल की उम्र से अलग-अलग भाषाओं की फिल्मों के लिए ‘साउंड इफ़ेक्ट’ तैयार कर रहे करण मुंबई में अपना खुद का स्टूडियो, Just Foley Art चला रहे हैं। उन्होंने साल 2009 में अपने एक दोस्त, हुज़ेफा कैसर के साथ मिलकर अपना यह स्टूडियो शुरू किया था। हालांकि, इससे पहले उन्होंने लगभग छह साल फ्रीलांस प्रोजेक्ट किए थे और उससे पहले वह बीआर प्रोडक्शन के साथ जुड़े हुए थे।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए उन्होंने अपने इस पूरे सफर के बारे में बताया।
बीआर प्रोडक्शन में सीखा काम
करण बताते हैं, “मैं बीआर प्रोडक्शन के स्टाफ क्वार्टर्स में ही पला-बढ़ा। मेरे पिताजी उनकी सिक्योरिटी टीम में थे और मेरा परिवार वहीं रहता था। बचपन से ही मैंने फिल्म प्रोडक्शन को बहुत करीब से देखा और जाना। पढ़ाई में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी और इसलिए एक बार मैं सातवीं कक्षा में फेल हो गया था। मेरे पिताजी को थोड़ी चिंता हुई तो वह मुझे स्टूडियो लेकर पहुंच गए। उस जमाने में स्टूडियो के साउंड इंजीनियर, बीएन तिवारी थे। पिताजी ने उनसे कहा कि आप मेरे बेटे को कोई हुनर का काम सिखा दें ताकि यह जीवन में कुछ कर पाए।”
अच्छी बात यह थी कि करण खुद भी साउंड के क्षेत्र में काम करना चाहते थे। खासकर कि ‘फौली आर्ट’ पर। उन्होंने बताया, “मैं शायद 11 साल का था, जब मैंने एक बार रात के समय एक आर्टिस्ट को स्टूडियो में फौली करते हुए देखा था। वह अलग-अलग चीजों की आवाज रिकॉर्ड कर रहे थे। मुझे यह बहुत मजेदार लगा और मैंने सोच लिया कि मैं भी यह काम करना सीखूंगा। इसलिए जब पिताजी ने साउंड डिपार्टमेंट में काम सीखने के लिए भेजा तो साउंड की जानकारी के साथ-साथ मैंने फौली के बारे में भी जाना।”
हालांकि, इसके साथ-साथ उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी। पढ़ाई के साथ-साथ, वह रात के समय साउंड और फौली आर्टिस्ट के साथ काम सीखते और करते थे। साल 1984 में उन्होंने ‘तेरी मेहरबानियां’ फिल्म के लिए पहली बार फौली किया। उन्होंने बताया कि टीम में वह तीन आर्टिस्ट थे और यह उनकी बतौर फौली आर्टिस्ट पहली फिल्म थी। इसके बाद, उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
उन्होंने बताया, “उस जमाने में बीआर प्रोडक्शन का स्टूडियो ही पहले ‘रॉक एंड रोल स्टूडियो’ था। इसलिए न सिर्फ मुंबई से, बल्कि देश के हर एक कोने से, अलग भाषाओं में बनने वाली फिल्मों की साउंड का काम यहीं पर आता था। इसलिए कई बार एक ही दिन में, हमें पूरी फिल्म की फौली करनी पड़ती थी। उस समय मेरे दो साथी, लाला और असलम हुआ करते थे। लाला मुझसे सीनियर हैं और उन्हें देखकर, मैंने काफी कुछ सीखा।”
लेकिन समय के साथ न सिर्फ तकनीक, बल्कि काम करने का तरीका भी बहुत ज्यादा बदल गया है। पहले के जमाने में सिर्फ एक ही ट्रैक होता था, जिस पर सभी साउंड रिकॉर्डिंग करनी पड़ती थीं। लेकिन आज के जमाने में अलग-अलग साउंड इफेक्ट्स के लिए अलग-अलग ट्रैक इस्तेमाल किए जाते हैं।
आसान नहीं है यह काम
करण ने आगे बताया कि इस बारे में बात करना जितना आसान है, यह काम उतना ही मुश्किल है। क्योंकि जरुरी नहीं कि जो चीज आपको स्क्रीन पर दिख रही है, उसकी आवाज भी उसी चीज को इस्तेमाल करके बनाई गयी हो। जैसे हवा के बहने की आवाज कपड़ों को लहराकर रिकॉर्ड की जाती है। सूखे पत्तों की आवाज के लिए कई बार रील को क्रश किया जाता है। फर्नीचर के टूटने की आवाज के लिए खाली लकड़ी के डिब्बों का। कीचड़ के लिए पुराने अख़बारों को पानी में भिगोकर इस्तेमाल किया जाता है। किसी को चाकू मारने/घोपने की आवाज के लिए तरबूज या पत्तागोभी इस्तेमाल में ली जाती है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि एक 10×16 फ़ीट के स्टूडियो में, वह लगभग सभी फिल्मों के लिए साउंड इफेक्ट्स बना लेते हैं।
इस प्रक्रिया के बारे में, उन्होंने कहा कि काम को थोड़ा आसान बनाने के लिए वह एक-एक करके काम करते हैं। जैसे फिल्म के दृश्य आने के बाद, वह सबसे पहले चेक करते हैं कि कहां-कहां क़दमों की आवाज की जरूरत है। साथ ही, किस-किस किरदार के लिए। फिर उसी हिसाब से सबसे पहले क़दमों की आवाज रिकॉर्ड की जाती है। इसमें भी उन्हें काफी क्रिएटिव होना पड़ता है, जैसे मुख्य किरदार यदि पुलिस में है तो उसके क़दमों की आवाज से एक रौब और दृढ़ता झलकनी चाहिए, ताकि दृश्य और आवाज साथ में मिलकर दर्शक के मन में प्रभावी छवि बना सकें।
वहीं, अगर विलेन के लिए कदमों की आवाज की जरूरत है तो इसे कुछ इस तरह बनाया जाता है कि उसके कदमों की आवाज से उसके किरादर की प्रकृति का अहसास हो जाए। कदमों की आवाज के बाद, फिल्म में कपड़ों के शफल की जितनी भी आवाजें हैं, उन्हें रिकॉर्ड किया जाता है। इसके बाद, शरीर की जो भी हलचल हुई जैसे किसी का गले मिलना, लड़ाई के दौरान एक-दूसरे पर वार करने आदि की आवाजें तैयार की जाती हैं।
उन्होंने बताया कि दंगल फिल्म में कुश्ती के दृश्यों के लिए आवाज तैयार करने के लिए उन्हें राजस्थान से कुछ पहलवानों को बुलाना पड़ा था। ताकि कुश्ती का सही प्रभाव आ सके। इसके अलावा कुछ दृश्यों, जिनमें कुछ अलग आवाजों की जरूरत है जैसे तलवारवाजी, बिल्डिंग का गिरना, बम ब्लास्ट, गाड़ियों के टकराने की आवाज आदि के लिए और अलग-अलग चीजें इस्तेमाल की जाती हैं। उन्होंने कहा कि आज के समय में एक फिल्म की फौली के लिए लगभग एक महीने तक का समय जाता है।
लगभग 4000 फिल्मों के लिए किया है काम
साल 1984 से लेकर अब तक करण अर्जुन सिंह लगभग 4000 फिल्मों के लिए काम कर चुके हैं। उन्होंने बताया, “मैंने अबतक ‘तेजाब’, ‘मैंने प्यार किया’ जैसी फिल्मों से लेकर ‘सुल्तान’, ‘दंगल’, ‘टाइगर जिन्दा है’, ‘कृष थ्री’, ‘बाहुबली’ जैसी बड़ी फिल्मों के लिए काम किया है। हाल ही में, मुझे ‘भुज’ फिल्म के लिए भी फौली करने का मौका मिला। फिल्मों के अलावा वेब सीरीज के लिए भी काम कर रहा हूं। जैसे ‘पाताल लोक’ के लिए मैंने ही फौली किया था।”
उन्होंने बताया कि अब तक उनके करियर की सबसे मुश्किल फिल्म कृष 3 थी। क्योंकि इसमें बहुत ही उम्दा विज़ुअल इफेक्ट्स का इस्तेमाल हुआ है। बिल्डिंग का गिरना, रोबोट्स, मेटल की आवाज आदि। इसलिए आवाज भी वैसी ही चाहिए थी। करण और उनकी टीम ने इस फिल्म के लिए बहुत ज्यादा रिसर्च करके काम किया था।
उन्होंने साल 2003 तक बीआर स्टूडियो के साथ काम किया था। इसके बाद वह फ्रीलांस प्रोजेक्ट करने लगे। लगभग छह सालों तक फ्रीलांस के तौर पर काम करने के बाद उन्होंने 2009 में अपना खुद का स्टूडियो शुरू किया। हालांकि, हमारे देश में अभी भी इस कला के बारे में लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं है। क्योंकि परदे के पीछे काम करने वाले कलाकारों का चेहरा तो क्या ,नाम भी बहुत ही कम सामने आ पाता है।
करण का कहना है, “यह ‘थैंक लेस’ जॉब है। अगर आप में कला के लिए पागलपन है और जूनून है कि आपको कुछ क्रिएटिव करना है, तभी आप इस क्षेत्र में आगे बढ़ सकते हैं। साथ ही, हमारे यहां फौली सिखाने वाली कोई संस्थान भी नहीं है। फिलहाल, जो भी आर्टिस्ट इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं, लगभग सभी ने काम करते हुए सीखा है।”
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इसलिए करण की ख्वाहिश है कि वह अपने स्टूडियो के जरिए लोगों के लिए फौली पर कोई ट्रेनिंग कोर्स शुरू करें। ताकि फिल्म इंडस्ट्री में काम करने की इच्छा रखने वाले युवाओं को साउंड के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए सही मार्गदर्शन मिल सके। “डिजिटल के आने से देश की अलग-अलग भाषाओं में बहुत सारा कंटेंट बन रहा है। इसलिए हमें हर एक स्टेज पर हुनरमंद कलाकारों की जरूरत है। इसलिए फौली को लेकर लोगों में जितनी ज्यादा जागरूकता हो, उतना अच्छा है,” उन्होंने अंत में कहा।
अगर आप फौली आर्ट या करण अर्जुन सिंह के बारे में अधिक जानना चाहते हैं तो उन्हें इंस्टाग्राम पर फॉलो कर सकते हैं।
संपादन- जी एन झा
तस्वीर और वीडियो साभार: करण अर्जुन सिंह
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