अगर कोई किसान चाहे, तो खेती में नये-नये प्रयोग करके न सिर्फ खुद सफलता हासिल कर सकता है, बल्कि दूसरे किसानों के लिए प्रेरणा भी बन सकता है। जैसा कि महाराष्ट्र के गन्ना किसान अमर पाटिल ने किया है। उन्होंने गन्ने की उपज बढ़ाने के लिए कई अभिनव तरीके अपनाकर मिसाल कायम की है। उनके कार्यों के लिए उन्हें, वसंतराव नायक अवॉर्ड, पंजाबराव देशमुख कृषि रत्न, मनुष्यबल विकास लोकसेवा अकादमी जैसे कई सम्मानों से भी सम्मानित किया जा चुका है।
महाराष्ट्र के ‘शुगर बेल्ट’ के नाम से मशहूर सांगली जिले के रहने वाले अमर पाटिल, अपने परिवार की पाँचवी पीढ़ी हैं, जो गन्ने की खेती कर रहे हैं। 39 वर्षीय पाटिल ने पिछले आठ सालों में तरह-तरह के प्रयोग करके मात्र एक एकड़ जमीन से 130 टन गन्ना उगाया ह। वह जिन वैज्ञानिक तरीकों से खेती कर रहे हैं, उनसे न सिर्फ उनका उत्पादन बढ़ा है, बल्कि पानी की खपत भी कम हुई है।
गन्ना किसानों पर अक्सर सिंचाई के लिए बहुत ज्यादा पानी की बर्बादी को लेकर सवाल उठते हैं। लेकिन, पाटिल बताते हैं कि वह ‘ड्रिप इरिगेशन सिस्टम’ से खेतों में पानी देते हैं और उन्होंने अपने खेतों की मिट्टी के पीएच लेवल में सुधार किया है।
वैज्ञानिक तरीकों से आया बदलाव:
अमर पाटिल ने कृषि विषय में पढ़ाई की है। उन्होंने तय किया कि वह अपने खेतों से गन्ने का उत्पादन बढ़ाने के लिए काम करेंगे ताकि उनकी आय बढ़ सके। वह बताते हैं, “मैं साल 2006 से गन्ने की GSK86032 किस्म का उत्पादन कर रहा हूँ और मुझे एक एकड़ जमीन से 30-40 टन ही उत्पादन मिल पाता था। इसलिए, मैंने सबसे पहले पानी देने के तरीकों पर काम किया और नहर से सिंचाई की जगह, मैंने ड्रिप इरिगेशन सिस्टम पर काम किया। इससे, फसल को जरूरत के हिसाब से ही पानी मिलने लगा। इस तरीके से हमारी उपज में 15% तक की बढ़ोतरी हुई।”
साथ ही, उन्होंने यह भी पता लगाने की कोशिश की, कि कौनसी चीजें गन्ने के कम उत्पादन के लिए जिम्मेदार है? वह कहते हैं कि पिछली फसल की कुछ ठूंठ (स्टब) में संक्रमण होने लगता है और अगर इन्हीं को फिर से खेत में बो दिया जाए तो इससे पौधों के विकास पर असर पड़ता है। इसलिए, उन्होंने फसल के लिए ताजे बीज खरीदना शुरू किया और इन्हें खेत में सीधा बोने की बजाय नर्सरी में पौध तैयार की। इससे उन्हें अच्छी फसल मिलने लगी। इन सभी प्रयासों से, साल 2013 में उनकी एक एकड़ जमीन से उन्हें 70 टन गन्ने का उत्पादन मिला।
लेकिन उनकी इच्छा हुई कि वह एक एकड़ से 100 टन का उत्पादन लेकर रिकॉर्ड बनाएं। इसलिए, अमर ने मिट्टी पर काम करना शुरू किया और वह इसकी गुणवत्ता को बढ़ने के तरीके सोचने लगे। वह कहते हैं, “इसके लिए मैंने अपने भतीजे की मदद ली, जिसने कृषि में ग्रैजुएशन की है। मैंने सरकारी विभागों के कुछ कृषि विशेषज्ञों से भी बात की और दूसरे किसानों की मदद से भी मिट्टी की उत्पादकता और उपजाऊ क्षमता को प्रभावित करने वाले तत्वों के बारे में जानने की कोशिश की।”
अपनी जानकारी के बारे में बताते हुए, वह कहते हैं कि उन्होंने कई चीजों के बारे में सीखा, जैसे कि मिट्टी का पीएच लेवल उपज से पहले और बाद में बदलता है। फसल चक्र के दौरान, मिट्टी में नमी और सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा में भी बदलाव होता है। अगर एक ही जमीन पर एक ही फसल बार-बार रोपी जाए तो मिट्टी की गुणवत्ता पर भी असर पड़ता है।
मिट्टी के पीएच लेवल को सुधारने के लिए उन्होंने नदी के पानी के साथ भूजल भी मिलाया। वह कहते हैं, “नदी के पानी में जो नमक होता है, वह मिट्टी को कठोर बनाता है और इसकी गुणवत्ता गिराता है। मैंने सुनिश्चित किया कि खेतों में सिंचाई के लिए, ताजा पानी का इस्तेमाल हो। इससे पीएच लेवल 5.5 पर आ गया।”
सूक्ष्म पोषक तत्व बढ़ाने के लिए उन्होंने अपने 14 एकड़ के खेत में ‘इंटरक्रॉपिंग’ तरीके से खेती करना शुरू किया। वह कहते हैं, “मैंने तीन एकड़ की जमीन तैयार की और इसे बराबर भागों में बाँट लिया और तय किया कि एक ही जमीन पर लगातार दो सालों के लिए गन्ने की फसल नहीं ली जाएगी। गन्ने की कटाई के बाद, उस जमीन को हरा चना, हल्दी, शकरकंद, मिर्च, सोयाबीन और टमाटर उगाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।”
मेहनत का मिला मीठा फल:
वह आगे बताते हैं, “पौधों को ज्यादा पोषक तत्व देने के लिए मैं जैविक खाद और अन्य जैविक पोषण जैसे- पेड़ों के सूखे पत्ते, शाखाएं और सूखे फूल आदि भी डालता हूँ। रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कम से कम होता है। यह सिर्फ तभी डाला जाता है जब कोई कृषि विशेषज्ञ सलाह देते हैं और वह भी जरूरत के हिसाब से कम से कम मात्रा में।”
सालों की मेहनत और कोशिशों से आखिरकार अमर पाटिल ने साल 2017 में अपनी एक एकड़ जमीन से 100 टन गन्ने का उत्पादन लिया था। वह कहते हैं, “मैं बहुत खुश था और दूसरे इलाकों से भी किसान मेरे खेत पर आकर, इस भारी उत्पादन को देखने लगे।” उसी साल उन्हें वसंतराव नायक अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था।
साल 2019 में उनकी एक एकड़ जमीन से 130 टन गन्ने का उत्पादन हुआ, जिससे उन्हें सिर्फ गन्ने की फसल से साढ़े तीन लाख रुपए की कमाई हुई। उनको देखकर इलाके के दूसरे किसानों ने भी उनकी तकनीकों को अपनाते हुए, गन्ने की फसल पर काम किया। सांगली के जिला अधीक्षक कृषि अधिकारी बसवराज मस्तोली कहते हैं, “अब और भी कुछ किसान हैं, जिन्होंने एक एकड़ से 100 टन या इससे ज्यादा गन्ने का उत्पादन लिया है। जगह की उपलब्धता कम हो रही है इसलिए, अब कम जगह से ज्यादा उत्पादन की जरूरत है।”
बसवराज कहते हैं कि किसान वैज्ञानिक तरीकों से शोध करके सटीक तकनीकों का उपयोग करें और अच्छे नतीजे दें। उनका कहना है कि इंटरक्रॉपिंग से भी किसान की आय बढ़ती है क्योंकि, वे एक मौसम में एक साथ कई फसलें उगा सकते हैं। हालांकि, अमर कहते हैं कि भले ही उनके पास कुशलता थी, फिर भी सही उपकरणों के लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ा। अमर कहते हैं, “सही सुझावों के साथ, सही गुणवत्ता वाले बीज, ड्रिप इरिगेशन सिस्टम और जैविक खाद का होना भी ज़रूरी है। सही उत्पादों की पहचान करना और समय पर प्रक्रियाओं का पालन करना एक मुश्किल काम था।”
संपादन- जी एन झा
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