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सौ साल की मन कौर ने वैनक्युवर सीनियर गेम्स प्रतियोगिता में भाग लेकर, बढ़ाया भारत का मान!

अग़र हौंसले बुलंद हों और इरादे चट्टान से, तो बढ़ती उम्र और लिंग जैसी बंदिशें अपने आप टूट कर बिखर जाती हैं। कुछ ऐसे ही मज़बूत इरादे और ज़ज्बा है 100 साल की मन कौर में। मन कौर वैनक्युवर सीनियर गेम्स प्रतियोगिता में सबसे उम्रदराज़ महिला प्रतिभागी बन गयीं हैं।

हम सभी में ऊर्जा का एक ऐसा असीम भण्डार छुपा रहता है, जिससे हम कुछ भी हासिल कर सकते हैं। पर हम सारी उम्र अपने आप से ही अंजान रहते हैं और अपनी कमजोरियाँ गिनाते रहते हैं । कभी बढ़ती उम्र का रोना तो कभी महिला होने का तो कभी कोई और परेशानी। सारी उम्र अपने ही बनाये मकड़जाल में बीत जाती है और हमें अपनी इच्छाशक्ति का भान ही नहीं हो पाता। अपने आप से बहार निकलिये और देखिये कि ज़िन्दगी तमाम संभावनाओं से भरी पड़ी है। उम्र, लिंग या कोई शारीरिक विकृति आपको तभी तक कमज़ोर बना सकती है जब तक आप उसे खुद पर हावी होने देते हैं।

ग़र हौंसले बुलंद हों और इरादे चट्टान से, तो बढ़ती उम्र और लिंग जैसी बंदिशें अपने आप टूट कर बिखर जाती हैं। कुछ ऐसे ही मज़बूत इरादे और ज़ज्बा है 100 साल की मन कौर में।

 

मन कौर वैनक्युवर सीनियर गेम्स प्रतियोगिता में सबसे उम्रदराज़ महिला प्रतिभागी बन गयीं हैं।

Man Kaur, 100 year old senior games sprinter

मन कौर ने उम्र और लिंग के इस मिथक को तोड़, सफलता का एक नया कीर्तिमन गढ़ा। वो वैनक्युवर सीनियर गेम्स में अभी तक की सबसे उम्रदराज़ महिला प्रतिभागी हैं।

 

अपनी मजबूत संकल्प शक्ति से वे, 100 मीटर की दौड़ को 1 मिनट 21 सेकंड में पूरा कर फिनिश लाइन (समापन रेखा) तक पहुंची। दूसरे प्रतिभागियों, जो उम्र में मन कौर से काफी कम थे, से दौड़ में काफी पीछे रहने के बावजूद, लोग मन कौर का हौसला बढ़ा रहे थे।

मन जब 93 साल की थीं तब धाविका बनीं उस वक़्त वो एक दादी भी थीं। इससे पहले उन्होंने ना कभी खेल का प्रशिक्षण लिया था और ना ही कभी किसी खेल प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था। उनके बेटे गुरुदेव सिंह ने उन्हें दौड़ने के लिए उत्साहित और प्रेरित किया।
78 वर्षीय गुरुदेव खुद भी एक धावक (रनर) है और वो भी वरिष्ठ श्रेणी ( सीनियर केटेगरी ) की अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहते हैं।

 

गुरुदेव बताते हैं, “सन् 2011 में मुझे लगा मेरी माँ भी तो दौड़ सकतीं हैं। जब मैं सीनियर गेम्स में भाग लेने के बाद घर आया, वहां मैंने दूसरे देशों के बुज़ुर्ग खिलाड़ियों को देखा था। मैंने सोचा मेरी माँ भी तो इसमें भाग ले सकतीं हैं। वो एक स्वस्थ , शारीरिक रूप से फिट और स्फूर्तिवान महिला हैं। जब मैंने उन्हें ये बात बताई तो वो ख़ुशी- ख़ुशी इस नयी चुनौती के लिए राज़ी हो गयीं, इसके बाद हमने जल्द ही उनका प्रशिक्षण शुरू कर दिया। “

2011 में मन कौर ने चंडीगढ़ में नेशनल मास्टर्स एथलटिक्स चैंपिनशिप में भाग लिया। सेक्रेमेंटो में वर्ल्ड मास्टर्स एथेलेटिक्स चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने ’95+ आयु’ श्रेणी में भाग लिया और सेक्रेमेंटो में 2 स्वर्ण पदक जीते। अपनी आयु श्रेणी (ऐज केटेगरी) में उन्होंने 2 विश्व रिकॉर्ड बनाये और उन्हें साल का सर्वश्रेष्ठ एथलेटिक भी घोषित किया गया। तब से वे विभिन्न राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेती रहतीं हैं।
मन कौर ने 100 मी. , 200 मी . , 400मी. की रेस ( दौड़ ) , शॉटपुट और जेवलिन थ्रो में 5 स्वर्ण पदक जीते हैं।

गुरुदेव कहते हैं, “ किसी भी बीमा कंपनी में  मेरी माँ का बीमा कराने की हिम्मत नही थी। पर मुझमें और मेरी माँ में दौड़ के प्रति इतना जूनून है कि हम इन प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए मीलों लंबी यात्रा करते हैं और इसका खर्चा भी खुद ही उठाते हैं।“

मन कौर रोज़ाना टहलती हैं। वो घर का बना सादा खाना ही पसंद करती हैं और चंडीगढ़ में अपनी बेटी के साथ रहतीं हैं।

मूल लेख – रंजिनी सिवस्वामी ।


 

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