Placeholder canvas

फिल्म बनाने बिहार आए डायरेक्टर, 300 मज़दूरों को रोज़गार देने के लिए बनवा रहे गोबर के गणेशजी

लॉकडाउन में घर लौटे जो मजदूर खाली बैठे थे, वे अब रोजाना 450 से लेकर 1800 रुपए तक कमा रहे हैं।

कोरोना संक्रमण के दौर में अपनी फिल्म की कहानी की रिसर्च के लिए बिहार आये एक फिल्म निर्देशक ने गोबर से मूर्तियां बनवाकर 300 लोगों को रोजगार देने का काम किया है, जिसमें अधिकांश प्रवासी मजदूर हैं।

यह कहानी फिल्म निर्देशक संतोष बादल की है, जो अपनी एक कहानी की रिसर्च के सिलसिले में बिहार के मधुबनी जिले में आये थे। इस काम के लिए उन्होंने गोबर से गणपति की मूर्तियां बनवाईं। ये मूर्तियां जैसे ही सोशल मीडिया पर नजर आयीं, मुम्बई से उन्हें धड़ाधड़ आर्डर मिलने लगे। और आज हाल यह है कि उनके साथ इस काम में 200 से अधिक स्थानीय ग्रामीण जुड़ गये हैं। पर्यावरण के अनुकूल मूर्तियां बनाने वाले इन सभी लोगों को रोजगार मिल रहा है।

Mumbai film director
संतोष बादल

संतोष बादल ने द बेटर इंडिया को बताया, “यही तो मेरे फिल्म की कथा थी, फिल्म बनने से पहले ही इसकी कहानी सच हो गई है। मैं खुद ही अपनी इस फिल्म का किरदार बन गया हूं।”

संतोष बादल बॉलीवुड में फिल्मों और धारावाहिकों का निर्देशन करते हैं। हिंदी फिल्म फाइनल मैच, द रिटर्न ऑफ जगदीशचंद्र बसु, मैथिली फिल्म कखन हरब दुख मोर और भोजपुरी फिल्म सिंदुरवा बड़ा अनमोल सजनवां जैसी फिल्कामों का उन्होंने निर्देशन किया है। इसके अलावा उन्होंने कई धारावाहिकों का भी निर्देशन किया है। इन दिनों वह अपनी आगामी फिल्म ‘आइंस्टाइन’ के प्री प्रोडक्शन के काम में जुटे हैं। इसी सिलसिले में वह कोरोना संक्रमण और लॉक डाउन के दौरान मधुबनी जिले के जयनगर कस्बे के पास रघुनाथपुर गांव आये थे।

फोन पर हुई बातचीत में संतोष बताते हैं, “फिल्म का नायक आइंस्टाइन का नायक मानता है कि रोजगार के लिए हर बार शहर जाने की जरूरत नहीं। हम जहां खड़े हैं, वहीं रोजगार की व्यवस्था हो सकती है। हमारी मिट्टी भी हमें रोजगार दे सकती है। नायक के पास दो-तीन देसी गाय हैं, जिससे वह अपना रोजगार खड़ा करता है। जिस गोबर को हम बेकार समझकर फेंक देते हैं, उसी से वह पैसे कमाता है। बायोगैस प्लांट तक बनाता है। मैं रधुनाथपुर आकर इसी सच को जीना चाह रहा था, यह देखना चाह रहा था कि मैंने जो कहानी लिखी है, वह सच हो सकती है या नहीं। इसी क्रम में यह बदलाव हो गया।”

रघुनाथपुर गांव में जहां देसी गाय बड़ी संख्या में उपलब्ध हैं, वहां स्थानीय लोगों के सहयोग से संतोष बादल ने मूर्तियों की वर्कशाप शुरू की है। संतोष कहते हैं कि इस वर्कशॉप में अलग-अलग शिफ्ट में 300 से अधिक लोग काम करते हैं। इनमें से 200 लोग नियमित काम करते हैं और सौ अनियमित हैं। ये सभी आसपास के 19 गांवों से आते हैं। इनमें से तकरीबन 150 मजदूर ऐसे हैं, जो बिहार से बाहर काम करते थे, इस लॉकडाउन में गांव लौटे थे। अब उन्होंने यहीं रहने का संकल्प लिया है। इन मजदूरों को 450 से 1800 रुपये तक रोजाना आमदनी हो रही है। मुख्य मूर्तिकार को 1800 रुपये रोज दिये जा रहे हैं। तकरीबन सौ महिलाएं गोबर से बनने वाली अगरबत्ती के उद्योग से जुड़ी हैं। यहां मूर्तियों के अलावा धूपबत्ती, हवन गोइठा, दीपावली का दिया, लक्ष्मी गणेश की छोटी मूर्तियां भी बनायी जा रही हैं।

Mumbai film director
मूर्ति बनाता एक मजदूर

संतोष ने एक तरह की छोटी इंडस्ट्री खड़ी कर दी है और वहां अब लोगों को नियमित रोजगार मिलने लगा है। उनका सारा काम गोबर के इर्दगिर्द ही है। यह पर्यावरण के अनुकूल भी है और गोबर स्थानीय स्तर पर आसानी से और मुफ्त में उपलब्ध भी है। दिलचस्प है कि रघुनाथपुर संतोष का अपना गांव नहीं है। वह तो इस इलाके के भी नहीं हैं, उनका गांव यहां से लगभग 300 किमी दूर बिहार के ही औरंगाबाद जिले के दाउदनगर में है। वह यहां लॉकडाउन के दौरान मई में स्पेशल परमिशन लेकर आये थे। यहां आने की उनकी वजह यह थी कि इस इलाके में देसी गाय बड़ी संख्या में मिलते हैं।

देसी गाय और उसके गोबर से उत्पाद बनाने की बात उनके मन में काफी दिनों से रही है। इसी वजह से वह अपनी फिल्म आइंस्टाइन में अपने नायक को देसी गाय के गोबर की मदद से उद्योग खड़ा करता दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। वह कहते हैं, “विज्ञान और शोध में मेरी रुचि थी, मैं विज्ञान से जुड़ी किताबें पढ़ता रहता हूं। जर्मनी में भारतीय मूल के वैज्ञानिक वैदुर्य प्रताप शाही से इसी वजह से मेरा संपर्क हुआ। उन्होंने मुझे सुझाया कि देसी गाय के गोबर से कई काम किये जा सकते हैं। इसके अलावा की दूसरे वैज्ञानिकों से मेरा नियमित संपर्क है। वह भी मुझे सलाह देते रहते हैं। उन्हीं का सहयोग है कि आज उस जर्नी को जी रहा हूँ, जो मेरे फिल्म के नायक की कथा है।”

Mumbai film director
संतोष खुद भी मूर्तियों पर कलाकारी दिखाते हैं।

संतोष ने यह काम 5 जून, 2020 को शुरू किया था। वह अपने फेसबुक पेज पर लगातार इससे संबंधित वीडियोज पोस्ट करते हैं। उन्होंने desicow.com के नाम से एक वेबसाइट भी बनाई है। जिसके जरिये उनके पास गोबर से बने उत्पादों के आर्डर आते हैं। उनके कलाकारों ने अब तक छह हजार से अधिक मूर्तियां तैयार कर ली हैं। मगर उनके पास ऑर्डर काफी अधिक हैं।

वह कहते हैं, “मेरे पास मुंबई से 18 हजार मूर्तियों का आर्डर आया था। कोलकाता से काली और सरस्वती की दस हजार मूर्तियों का आर्डर है। जाहिर सी बात है कि लोगों के पास काम की अभी कोई कमी नहीं है।”

यह भी पढ़ें- क्लीन कुन्नूर: सालों से गंदा नाला बनी नदी को किया साफ, बाहर निकाला 12 हज़ार टन कचरा

 

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

Let us know how you felt

  • love
  • like
  • inspired
  • support
  • appreciate
X