Placeholder canvas

“जरूरतमंदों को पैसे देने के बजाय, खाना देना बेहतर…” मिलिए कोच्चि के इस प्रेरक चायवाले से!

केरल के कोच्चि के रहने वाले ओ.ए. नजर और उनके भाई ओ. ए. शमसुद्दीन, अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए, हर दिन कम से कम 10 लोगों को खाना खिलाते हैं।

“जरूरतमंदों को पैसे से मदद करने के बजाय, खाना देना हमेशा एक बेहतर विकल्प होता है,” केरल के कोच्चि में चाय की दुकान चलानेवाले ओ.ए. नजर कहते हैं।

वह कहते हैं, “यदि हम उन्हें पैसे देते हैं, तो हो सकता है कि वह किसी अच्छे काम के बजाय, इसका इस्तेमाल शराब खरीदने के लिए कर सकते हैं। इसलिए, मैं उन्हें मुफ्त में खाना खिलाता हूँ।”

अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए, नजर और उनके भाई ओ. ए. शमसुद्दीन, हर दिन कम से कम 10 लोगों को खाना खिलाते हैं और अब तक वह 180 से अधिक लोगों को खाना खिला चुके हैं।

नजर के पिता, कोच्चि में कलूर के पास अशोक रोड पर एक छोटी-सी स्टेशनरी की दुकान चलाते थे। वह अपनी कमाई के अधिकांश हिस्से को लोगों की मदद करने में खर्च कर देते थे। इसलिए, उन्हें काफी नुकसान होता था। अंततः उन्हें अपनी दुकान बंद करनी पड़ी।

नजर कहते हैं, “अपने पिता को खोने के बाद, हमने एक चाय की दुकान शुरू की। हमारी यह दुकान 1984 से चल रही है। लोगों को निःशुल्क खाना देने से पहले, हम जरूरतमंदों को कम कीमत पर भोजन देते थे। जैसे – यदि खाने की कीमत 30 रुपए है, तो हम उनसे सिर्फ 20 रुपए ही लेते थे।”

वह कहते हैं, “हमने निःशुल्क खाने की सुविधा कुछ हफ्ते पहले ही शुरू की थी। मेरे एक दोस्त ने मुझे बताया कि कोई स्पॉन्सर मुझे लोगों को निःशुल्क खाना खिलाने के लिए पैसे देना चाह रहा है। मुझे आज तक नहीं पता है कि वह स्पॉन्सर कौन है।”

स्पॉन्सर की मदद से, नजर अपने भाई के साथ मिलकर लोगों को निःशुल्क भोजन दे रहे हैं।

“हमें स्पॉन्सर के द्वारा, लोगों को निःशुल्क खाना खिलाने के लिए एक सप्ताह पहले पैसा मिल जाता है,” 52 वर्षीय नजर ने बताया।

Kochi Tea Seller
नजर की चाय दुकान

नजर की दुकान रविवार को छोड़कर हर दिन, सुबह 6 से दोपहर 3 बजे तक खुली रहती है।

नजर बताते हैं, “अज्ञात स्पॉन्सर द्वारा पैसे मुहैया कराने से पहले केवल एक शर्त थी कि यह सुनिश्चित किया जाए कि लोग खाने को फिर से न बेचें और इसके लिए उन्हें खाने को पैकेट में नहीं उपलब्ध कराना चाहिए।”

नजर कहते हैं कि उनमें अपने चाय स्टॉल पर आने वाले जरूरतमंद ग्राहकों को पहचाने की विशेष क्षमता है।

वह बताते हैं, “मेरी दुकान में कई लोग आते हैं। मैं सिर्फ उनकी आँखों में देखकर समझ जाता हूँ कि उनके पास पैसे हैं या नहीं। एक बार मुझे यकीन हो जाता है कि वे मुझे खाने के लिए पैसे नहीं दे सकते, तो मैं उन्हें बिना पैसे के खाना दे देता हूँ।”

नजर कहते हैं कि जो कहानी सिर्फ एक स्पॉन्सर से शुरू हुई थी, अब उसका दायरा बड़ा हो गया है। क्योंकि, अब उनके पास ऐसे कई स्पॉन्सर आ रहे हैं। उन्हें यकीन है कि नए स्पॉन्सर के साथ वह अधिक से अधिक जरूरतमंदों की मदद करने में सक्षम होंगे।

लॉकडाउन के शुरुआती दिनों के दौरान, नजर की दुकान बंद हो गई थी। पहले वह एक थाली 35 रुपये में बेचते थे, लेकिन अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए इसे 40 रुपये तक बढ़ाना पड़ा।

वह बताते हैं, “हमारे नियमित ग्राहक ड्राइवर हैं, जिन्हें अच्छे खाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है। हम उन्हें थाली में चावल, करी और नॉन-वेज फ्राइड फूड भी सर्व करते हैं।”

हालाँकि, नजर के भाई, शमसुद्दीन अभी कोरोना वायरस से प्रभावित हैं और वह कहते हैं कि जैसे ही वह ठीक होंगे, उनकी योजना अपने दुकान के विस्तार की है, ताकि अधिक से अधिक लोगों की मदद हो सके।

वह कहते हैं, “हमें सिर्फ 10 लोगों तक क्यों सीमित रहना चाहिए? हमारे लिए जितना संभव होगा, हम अधिक से अधिक लोगों के लिए निःशुल्क भोजन की सुविधा उपलब्ध करेंगे।”

मूल लेख  –

संपादन: जी. एन. झा

यह भी पढ़ें – मिलिए केरल के ‘दशरथ मांझी’ से, 50 साल में 1000 से ज्यादा सुरंग खोदकर गाँव में पहुंचाया पानी

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।

Kochi Tea Seller, Kochi Tea Seller, Kochi Tea Seller, Kochi Tea Seller,

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

Let us know how you felt

  • love
  • like
  • inspired
  • support
  • appreciate
X