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प्रेरक कहानी: नागालैंड की IPS अधिकारी चला रहीं हैं मुफ्त कोचिंग सेंटर, सीखा रहीं जैविक खेती

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डॉ. कौर ने अपने कोचिंग की शुरूआत नौवीं कक्षा के 50 से अधिक छात्रों के साथ की। जिनमें से आज कुछ ने नागालैंड के सीएम छात्रवृत्ति परीक्षा में सफलता हासिल की है, तो कईयों ने राज्य सरकार की विभागीय परीक्षाओं को क्लियर किया है। जबकि, कई इस साल यूपीएससी की परीक्षा देंगे।

यह प्रेरक कहानी 2016 बैच की आईपीएस अधिकारी डॉ. प्रितपाल कौर बत्रा की है। यह कहानी खास इसलिए है क्योंकि यह पुलिस अधिकारी अपनी तमाम व्यस्तताओं के बीच स्टूडेंट्स के लिए जहाँ मुफ्त में कोचिंग चला रहीं हैं, वहीं कई लोगों को जैविक खेती के गुर भी सीखा रहीं हैं।

डॉ. कौर की पहली पोस्टिंग सब-डिविज़नल पुलिस ऑफिसर (SDPO) के पोस्ट पर नागालैंड के सुदूरवर्ती जिला, तुएनसांग में हुई थी। वहाँ लोगों ने उनका काफी गर्मजोशी से स्वागत किया गया। स्थानीय लोगों से मिले इस आदर-सम्मान से वह काफी अभिभूत हुईं। इन दिनों वह नोक्लेक जिला के पुलिस अधीक्षक के रूप में अपनी सेवाएँ दे रहीं हैं।

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आईपीएस अधिकारी डॉ. प्रितपाल कौर बत्रा

डॉ. कौर ने द बेटर इंडिया को बताया, “ यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता मन मोह लेती है इसके अलावा, जिस चीज ने मुझे सबसे अधिक छुआ, वह यह थी कि जब मैं 2018 में वहाँ गई, तो मैंने देखा कि लोग कितने सच्चे और दयालु थे। मेरे बाहरी होने के बावजूद, उन्होंने मुझे अपने घर जैसा मान-सम्मान दिया। इससे मुझे अपने कर्तव्यों को एक नई ऊर्जा से पूरा करने की प्रेरणा मिली।”

डॉ. कौर को शिक्षण और खेती का शुरू से काफी शौक था, इसलिए उन्होंने सिविल सेवा की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए मुफ्त कोचिंग शुरू कर दी। उन्होंने अपने पैसों से उनके लिए किताबें और अन्य अध्ययन सामग्री भी मुहैया कराई। इसके अलावा, उन्होंने नशीली दवाओं की जद में आ चुके लोगों का इलाज कर, उन्हें जैविक खेती भी सिखायी। 

इसके फलस्वरूप, मूल रूप से हरियाणा के यमुनानगर की रहने वाली डॉ. कौर को नागा हिल्स में रहने वाले लोग काफी मानने लगे, जहाँ नशीली दवाओं, एचआईवी-एड्स, लंबे समय से जारी विद्रोह का गहरा प्रभाव है।

पहली पोस्टिंग

तुएनसांग में अपनी पहली पोस्टिंग के दौरान उन्होंने न केवल अपराध को कम करने की दिशा में उल्लेखनीय काम किया, बल्कि कई  स्कूलों, चर्चों, छात्र संघों और संगठनों के साथ भी एक बेहतर समन्वय स्थापित किया। जो युवा छात्र, उनसे मिले थे, वह उनकी प्रतिभा की कायल हो गईं, और ऐसे छात्रों के लिए कुछ सार्थक करने का फैसला किया।

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डॉ. कौर के छात्र

ओर्थनून किकॉन, अतिरिक्त सहायक आयुक्त (EAC), जिन्होंने डॉ. कौर को कोचिंग क्लास सेटअप करने में मदद की, कहते हैं, “तुएनसांग नागालैंड के पूर्वी छोर पर स्थित है। पहाड़ी इलाके की वजह से यह राज्य के बाकी जिला से काफी अलग है। यहाँ कई ऐसे छात्र थे, जिन्होंने ग्रेजुएशन कर लिया था, लेकिन उचित मार्गदर्शन के अभाव में सिविल सेवा परीक्षा में सफलता हासिल करने में असमर्थ थे। नागालैंड में, सरकार सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक है। कई युवाओं के लिए, सरकारी नौकरी करना खुद को गरीबी के दल – दल से बाहर निकालने का एक रास्ता है, इससे वह खुद को नशे की चपेट में भी आने से रोकते हैं।”

शुरूआत में, डॉ. कौर ने ट्रायल के आधार पर सिविल सेवा परीक्षा के लिए कोचिंग देने का फैसला किया। स्थानीय प्रशासन ने सोशल मीडिया के जरिए इस पहल का प्रचार किया और उन्हें काफी अच्छी प्रतिक्रिया भी मिली। वहीं, पुलिस अधीक्षक, भारत मार्काड ने कोचिंग के लिए कार्यालय परिसर के कॉन्फ्रेंस हॉल के इस्तेमाल को मंजूरी देने के साथ ही, छात्रों के लिए अध्ययन सामग्री खरीदने में भी मदद की।

डॉ. कौर ने इस कोचिंग की शुरूआत नौवीं कक्षा के 50 से अधिक छात्रों के साथ की। उन्होंने अपने पैसे से किताबों को हैदराबाद से मंगाया। उनके इस पहल में ओरेंथून के अलावा, ईएसी के दो अन्य अधिकारियों, केविथिटो और मूसुनेप का भी साथ मिला। जिन्होंने छात्रों को नागालैंड लोक सेवा आयोग (एनपीएससी) की तैयारी कराने में मदद की।

डॉ. कौर का कहना है, “कुल मिलाकर, 53 छात्र थे, जिनमें से कुछ ने नागालैंड के सीएम छात्रवृत्ति परीक्षा में सफलता हासिल की है, जबकि कई लोगों ने राज्य सरकार की विभागीय परीक्षाओं को क्लियर किया है। जबकि, कई इस साल यूपीएससी की परीक्षा देंगे।”

उन्होंने नोक्लाक जिला के एसपी के रूप में कार्यभार संभालने के बाद भी इस पहल को जारी रखा। वह छात्रों को नि:शुल्क कोचिंग देने के अलावा, तुएनसांग जिला के कृषि विज्ञान केंद्र के साथ भी काम कर रही हैं, जिसके तहत वह किसानों को आधुनिक जैविक खेती तकनीक, फूड प्रोसेसिंग, आदि विषयों में भी प्रशिक्षण दे रही हैं।

एक और महत्वपूर्ण पहल के तहत, डॉ. कौर ने स्कूलों और कॉलेजों में नशीले पदार्थों के सेवन के खिलाफ भी अभियान चलाया और अपनी डॉक्टर की ट्रेनिंग का इस्तेमाल करते हुए कई युवाओं को इसकी चपेट से बाहर निकाला।

डॉ. कौर द्वारा किए गए एक और उल्लेखनीय कार्य के बारे में ऑर्थनून का कहना है, “नोक्लाक और तुएनसांग जैसे जिलों में, एचआईवी-एड्स के मामले और नशीली दवाओं का सेवन काफी व्यापक है। गत वर्ष अगस्त में, मुझे एचआईवी-एड्स के संक्रमण के साथ पैदा हुए 74 बच्चों की सूची मिली थी, इसमें अधिकांशतः अनाथ थे। जिला पुलिस के साथ काम करते हुए, हमने उनके देखभाल की व्यवस्था की। इन बच्चों के देखरेख की जिम्मेदारी डॉ. कौर ने अपने कंधों पर ली थी। यह केवल गिने-चुने कार्यों की झलक है, जो वह एक बेहतर समाज के निर्माण के लिए निरंतर कर रही हैं।”

खेती के जरिए लोगों को नशे की चपेट से बाहर निकालने के लिए शुरू की पहल

नोक्लाक भारत का सबसे छोटा और नागालैंड का 12वाँ जिला है और यहाँ के अधिकांश निवासी खिमनियुंगन जनजाति के हैं, जो नागालैंड की एक प्रमुख जनजाति है।

तुएनसांग जिले की तरह, नोक्लाक में भी मूल-भूत सुविधाओं की भारी कमी है और यहाँ भी नशीली दवाओं का सेवन और एचआईवी-एड्स एक बड़ी समस्या है।

लोगों को नशे की चपेट से बाहर निकालने के लिए कई कार्यक्रमों का आयोजन करती हैं डॉ. कौर

इसे लेकर डॉ. कौर कहती हैं, “एक पुलिस अधिकारी होने के नाते, हम कई जगह छापेमारी करते हैं, कई कानूनी प्रावधानों पर अमल करते हैं, लेकिन एक डॉक्टर होने के नाते, मुझे लगा कि हमें इससे एक कदम और आगे जाना होगा। लोगों को नशा मुक्ति के लिए ओएसटी ट्रीटमेंट देना होगा और उनकी काउंसिलिंग करनी होगी। नोक्लाक में आने के बाद, मैंने फैसला किया कि मैं ऐसे लोगों को जीविका कौशल, खासकर खेती सिखाने की दिशा में काम करूँगी, ताकि ऐसे लोग नशे की चपेट से बाहर आ सकें।”

वह आगे कहती हैं, “कृषि विभाग की मदद से स्थानीय ओएसटी सेंटर, खिमनियुंगन बैपटिस्ट चर्च, और खियामिनुंगन ट्राइबल काउंसिल में नोक्लाक पुलिस ने सितंबर 2020 के अंत तक कई सेमिनारों का आयोजन किया। जिसके तहत, नशे की चपेट में आए 120 लोगों को मधुमक्खी पालन, जैविक खेती, और वर्मीकम्पोस्टिंग सीखा कर इलाज किया जा रहा है। यदि इनमें से 10 लोग भी खेती में अपना करियर आगे बढ़ाते हैं, तो यह हमारी एक बड़ी कामयाबी होगी।”

नागालैंड के पूर्व पुलिस महानिदेशक रूपिन शर्मा कहते हैं, “डॉ. कौर जमीन से जुड़ी, मेहनती और संवेदनशील अधिकारी हैं। वह हमेशा ऊर्जावान और सकारात्मक रहतीं हैं, जिससे उन्हें लोगों से जुड़ने और समस्याओं को हल करने में मदद मिलती है। नागालैंड वासी अपनी समस्याओं को अपने तरीके से सुलझाने में यकीन रखते हैं और पुलिस और अदालतों का रुख नहीं करते हैं। इसका अर्थ है कि अधिकांश जिलों में पुलिस की भूमिका न के बराबर है। इसलिए, जब पुलिस विकसित होती है, तो उसे स्थानीय लोगों से जुड़ना चाहिए। नशे के खिलाफ पहल, छात्रों को कोचिंग की व्यवस्था और समुदाय की बेहतरी के अन्य कार्यों की वजह से डॉ. कौर ने जमीनी स्तर पर समुदायों के साथ एक बेहतर संबंध स्थापित किया है।”

एक अन्य अधिकारी, जो तुएनसांग में डॉ. कौर के साथ काम करते थे, नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं, “नागालैंड के लोगों ने सिविल सेवा के कई अधिकारियों को देखा है। लेकिन, जो डॉ. कौर को सबसे खास बनाता है, वह यह है कि वह जिन उपायों को ढूढ़तीं हैं, उस पर विश्वास करती हैं और मजबूती से आगे बढ़ती हैं। शायद यही कारण है कि आज वह कई युवाओं के लिए प्रेरणस्त्रोत हैं।”

(मूल लेख- RINCHEN NORBU WANGCHUK)

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