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झारखंड: इस IFS अधिकारी ने अपने प्रयासों से 5000 हेक्टेयर के वन क्षेत्र को दिया नया जीवन!

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आईएफएस अधिकारी विकास उज्जवल ने झारखंड के लोहरदगा जिले में वन प्रमंडल अधिकारी के रूप में अपना पदभार संभालने के बाद, यहाँ 3 लाख से अधिक पौधे लगाए गए। जिससे जंगल की समृद्ध जैव विविधता को पुनर्स्थापित करने में मदद मिली।

विकास उज्जवल 2016 बैच के आईएफएस अधिकारी हैं। झारखंड के लोहरदगा जिले में वन प्रमंडल अधिकारी के रूप में अपना पदभार संभालने के बाद, उनके सामने कई मूलभूत चुनौतियाँ थीं।

लोहरदगा नक्सल प्रभावित क्षेत्र है और यहाँ के ग्रामीण आबादी की आय का मुख्य साधन पेड़ों की अवैध कटाई और व्यापार है। 

इस वजह से यहाँ लगभग 5000 हेक्टेयर के वन क्षेत्र को काफी तेजी से उजाड़ा जा रहा था। नतीजन, यहाँ की प्राकृतिक जल धाराएँ सूखने लगी थी।

लेकिन, उज्जवल के प्रयासों से यहाँ 3 लाख से अधिक पौधे लगाए गए। जिससे जंगल की समृद्ध जैव विविधता को पुनर्स्थापित करने में मदद मिली। 

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लोगों को वन संरक्षण के विषय में जागरूक करते उज्जवल

यह उनके प्रयासों का नतीजा है कि आज भालू, लोमड़ी, लकड़बग्घा, हिरण, साही जैसे जानवरों को वापस लाने के साथ-साथ प्राकृतिक जल धाराओं को भी पुनर्जीवित करने में मदद मिली।

लोगों की आय के लिए क्या था समाधान

स्थानीय लोगों की बेहतर आय के लिए यहाँ मधुमक्खी पालन, बम्बू क्राफ्ट और इकोटूरिज्म जैसे वैकल्पिक आजीविका के साधनों को बढ़ावा दिया गया। यहाँ तक कि वन विभाग द्वारा कुछ ग्रामीणों को फायर वॉचर के रूप में भी नियुक्त किया गया।

इस कड़ी में उज्जवल ने द बेटर इंडिया को बताया, “झारखंड में जल सुरक्षा की दृष्टि से यहाँ के वन क्षेत्रों की रक्षा महत्वपूर्ण है। क्योंकि, यहाँ से दामोदर, शंख और औरंगा जैसी तीन महत्वपूर्ण नदियाँ निकलती है। इसलिए हमने जंगलों की सुरक्षा के साथ-साथ, इसके सतह की जल प्रतिधारण क्षमता में सुधार किया। इसके अलावा, हमने संयुक्त वन प्रबंधन समिति का भी गठन किया, ताकि इसकी बेहतर निगरानी हो पाए। नतीजन, पिछले चार वर्षों में यहाँ कोई बड़ी आग नहीं लगी है।”

“हमारे प्रयासों से यहाँ एविफुना और अन्य वन्यजीवों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई। जिसका सीधा असर आस-पास के कृषि क्षेत्रों और फसल उत्पादन में कीट नियंत्रण पर पड़ा,” उन्होंने आगे बताया।

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अपने इस पहल के कारण, उज्जवल को कुछ ग्रामीणों द्वारा जान से मारने की धमकी भी मिली। लेकिन, उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी और समुदाय उन्मुख पहल को सफलतापूर्वक अंजाम देकर, एक उदाहरण पेश किया है।

लोगों का जीता दिल

अपनी ट्रनिंग पूरी करने के बाद, उज्जवल की यह पहली पोस्टिंग थी। और, उन्हें एहसास था कि वन संरक्षण और रोजगार का मुद्दा एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। इसलिए, उन्होंने वन संरक्षण का प्रयास करने से पहले, स्थानीय लोगों के लिए आजीविका के साधन को विकसित करने पर जोर दिया।

किसी बाहरी व्यक्ति के लिए, ऐसा प्रयास उत्साहजनक लग सकता है, लेकिन ग्रामीण लोगों के लिए इस बदलाव से गुजरना आसान नहीं होता है।

इसलिए, उन्होंने सबसे पहले, जेएफएमसी की एक बैठक बुलाई, यह इकाई वन विभाग और लोगों के बीच एक सेतु के रूप में काम करती है। इस बैठक में 130 समितियों में से केवल 11 समिति शामिल नहीं हुए और उज्जवल ने इसे एक अच्छा संकेत माना।

वह कहते हैं, “स्थानीय समस्याओं को सुनने और उसे हल करने के लिए काफी धैर्य की आवश्यकता होती है। मैंने उनकी चिन्ताओं को ध्यान से सुना और पर्यावरण और लोगों के लाभ के लिए, उस पर एक मजबूती के साथ आगे बढ़ने का वादा किया।”

इस कड़ी में सालगी गाँव के रहने वाले राजेन्द्र साहू कहते हैं, “यह शायद पहली बार था कि किसी वरिष्ठ अधिकारी को हमारे जिंदगी में दिलचस्पी थी।”

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वह आगे कहते हैं, “उन्होंने जमीनी स्तर पर काम किया। लोगों से मिले, उनकी चिन्ताओं को ध्यान से सुना। उन्होंने हमें वनों की कटाई के दुष्प्रभावों को समझाया और लोगों से इसे विनम्रतापूर्वक रोकने का अनुरोध किया। उन्होंने हमें विश्वास दिलाया और अपने वादों को सच साबित किया।”

उज्जवल के प्रयासों ने क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण के विमर्श को जन्म दिया और कुछ ही महीने में लगभग सभी समिति उनके पहल में शामिल हो गए।

आगे की नीति क्या थी?

एक बार स्थानीय लोगों को विश्वास में लाने के बाद, उज्जवल ने अपने कदम तेजी से बढ़ाए।

उन्होंने आजीविका के वैकल्पिक साधनों को बढ़ावा देने के लिए कई सरकारी योजनाओं पर अमल किया और मधुमक्खी पालन और बम्बू क्राफ्ट को लेकर कई प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए।

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इसे लेकर वह कहते हैं, “हम स्थानीय लोगों की जंगल पर निर्भरता कम करने के लिए 150 ग्रामणी के बीच, मधुमक्खी पालन और बम्बू क्राफ्ट ट्रनिंग किट वितरित किए। हमने उन्हें बास्केट, लैंप और पेन स्टैंड जैसे उत्पादों को बेचने के लिए, स्थानीय और थोक विक्रेताओं से भी जोड़ा।”

वह आगे कहते हैं, “आज लगभग 125 परिवार अपने घर में मधुमक्खी पालन कर, लाभ कमा रहे हैं। इसके अलावा, हमने अपने मुख्यालय में एक ऑयल प्रोसेसिंग यूनिट को भी स्थापित किया है। जिसका इस्तेमाल ग्रामीण निःशुल्क कर सकते हैं।”

बदला जंगल का परिदृश्य

किसी भी नई परियोजना को शुरू करने से पहले, उज्जवल ने जंगल में आग लगाने, नमोदाग झरने के पास कचरे को फेंकने जैसी गतिविधियों पर लगाम लगाया।

क्योंकि, इन समस्याओं के कारण, यहाँ के फॉरेस्ट पैच का घनत्व 30 प्रतिशत से भी कम हो गया था। इसलिए उन्होंने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण अभियान चलाया।

इसी के तहत साल 2017 में, यहाँ 3 लाख पेड़ लगाए गए। इसके अगले साल, बारिश के पानी को संरक्षित करने के लिए वन विभाग द्वारा 20 चेक डैम और तालाब बनाए गए।

वहीं, प्रशिक्षित कर्मचारियों और विशेषज्ञों द्वारा मिट्टी के कटाव को रोकने और मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए कई प्रयास किए गए।

स्थानीय लोगों को मिला बेहतर रोजगार का साधन

इन्हीं सब प्रयासों के फलस्वरूप, पेड़ों का विकास काफी तेजी से हुआ और इससे समग्र घनत्व में सुधार हुआ।

इसके बाद, वन विभाग ने जंगल के स्वास्थ्य को विनियमित करने करने के लिए सिल्विकल्चर ऑपरेशन को शुरू किया। 

उज्जवल कहते हैं, “काई और दीमक की उपस्थिति का अर्थ था कि यहाँ की हवा स्वच्छ हो रही थी। क्योंकि ये प्रदूषण या नमी सूखने पर जीवित नहीं रह सकते। अब जंगल की बेहतर जल धारण क्षमता के कारण, औरंगा नदी में हर मौसम में पानी रहने लगी। इससे न सिर्फ वन विभाग का मनोबल बढ़ा, बल्कि स्थानीय लोगों को भी इस पहल से जुड़ने की प्रेरणा मिली। इसी तरह का प्रभाव दूसरी नदियों को लेकर भी देखने को मिली।”

इको-टूरिज्म की शुरुआत

इन प्रयासों के परिणामस्वरूप नमोदाग गाँव में इको-टूरिज्म की शुरुआत करने में मदद मिली। इससे आज गाँव के करीब 40 लोगों को रोजगार मिल रहा है, जिन्हें इको-टूरिज्म साइटों का प्रबंधन करने के लिए गाइड के रूप में नियुक्त किया गया है। ये गाइड हर पर्यटक से मामूली शुल्क लेते हैं, जिससे इन्हें हर महीने करीब 6 हजार रुपए की कमाई हो जाती है।

इसे लेकर राजेन्द्र कहते हैं, “नमोदाग में झारखंड का दूसरा सबसे लंबा रेलवे पुल है। इसे बीच जंगल से देखा जा सकता है। यह एक मनोरम दृश्य होता है। अपने स्वच्छ वातावरण के कारण, यह अब एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल बन गया है।”

वह आगे कहते हैं, “आज यहाँ पंजीकृत पर्यटकों की संख्या 2.5 लाख से अधिक हो चुकी है। यहाँ दूसरे राज्यों से पर्यटक आने के साथ-साथ, विदेशी सैलानी भी आते हैं।”

पर्यटन को बढ़ावा मिलने के कारण, यहाँ पेड़ों की कटाई में 90 फीसदी तक की कमी आई है। वहीं, पर्यटकों की लगातार आवाजाही और पुलिस की सतर्कता के कारण समग्र अपराध दर में भी काफी कमी आई है।

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मूल लेख –

संपादन – जी. एन. झा

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