Placeholder canvas

क्या पाम ऑयल का उपयोग करते हुए जंगल बचा सकते हैं? भारतीय व्यवसायों के पास है इसका जवाब

क्या आप जानते हैं कि वैश्विक स्तर पर हर व्यक्ति सलाना लगभग 8 किलो पाम ऑयल का इस्तेमाल करता है। आप सोच रहे हैं कैसे? हमारे भोजन में, हमारे सौंदर्य प्रसाधनों में और अन्य वस्तुओं में, जिनका उपयोग हम रोज करते हैं। लेकिन, क्या आप यह जानते हैं कि अगर इसका इस्तेमाल जिम्मेदारी से किया जाए तो पर्यावरण संबंधित चुनौतियों का सामना करने के साथ-साथ स्थानीय किसानों को भी मदद मिल सकती है। अधिक जानकारी के लिए पढ़ें यह लेख।

(यह लेख आरएसपीओ के साथ सहभागिता में प्रकाशित किया गया है।) 

यदि आप गूगल पर पाम ऑयल खोजते हैं, तो आपको सैकड़ों जवाब मिलेंगे। एक ओर, आपको दक्षिण-पूर्व एशिया के वर्षा वनों में बुलडोजर चलने के फुटेज देखने को मिलेंगे, जहाँ वन्यजीवों के आवास नष्ट हो रहे हैं, तो दूसरी ओर आपको पाम ऑयल के गुणों के बारे में पता चलेगा। एक पक्ष कहता है कि तेल ने दुनिया के कई हिस्सों को आहत किया है, तो दूसरा पक्ष इसकी विशेषताओं को उजागर करता है कि दुनिया को क्यों सतत तौर पर विकसित तेल का उपयोग करना चाहिए।

गौरतलब है कि पिछले कुछ दशकों के दौरान संसाधित खाद्य पदार्थों और सौंदर्य प्रसाधनों की बढ़ती मांग के साथ पाम ऑयल की मांग भी काफी तेजी से बढ़ी है। पाम ऑयल के उत्पादन में सर्वाधिक वृद्धि वीविल (घुन) कीट के पॉलिनेशन (परागण) की शुरुआत के बाद हुई। इलेईडोबियम कैमेरूनिकस, जो ऑयल पाम को कुशलता से निषेचित करता है, इन्हें पहले हाथों से परागित करना पड़ता था।

लेकिन, वर्तमान समय में पाम ऑयल के उत्पादन के विषय में फैली नकारात्मकता ने हमारे दैनिक उपभोग की आदतों को लेकर वैश्विक चर्चा को प्रेरित किया है, ताकि हमारे खाने, सौंदर्य प्रसाधनों और नहाने-धोने के साबुनों से इसके अवयवों को बाहर रखा जा सके।

हालाँकि, अस्थिर पाम ऑयल के उत्पादन के खिलाफ बढ़ती मांग के बीच, एक तथ्य को अनदेखा किया जा रहा है कि टूथपेस्ट से लेकर डिटर्जेंट तक, हमारे दैनिक जीवन के लगभग 50 फीसदी जरूरी उत्पादों में पाम ऑयल या इसके डेरिवेटिव हैं। इस तरह, वैश्विक स्तर पर हर व्यक्ति सलाना लगभग 8 किलो पाम ऑयल का इस्तेमाल करता है।

यह मसले को साधारण रूप से प्रतिबंध लगाने की अपेक्षा कहीं अधिक जटिल बनाता है और इसमें सरकारों या पर्यावरणविदों के अलावा भी कई हितधारकों की भागीदारी की जरूरत होती है। पाम ऑयल पर प्रतिबंध लगाने से तेल के दूसरे विकल्पों पर दबाव बढ़ जाएगा। फलस्वरूप, इससे 10 गुना अधिक भूमि क्षेत्र प्रभावित होगी, क्योंकि ताड़ की तुलना में अन्य पौधे-आधारित विकल्प अधिक जगह लेंगे।

एक और महत्वपूर्ण बात, जिसके बारे में इन चर्चाओं में ध्यान नहीं दिया जाता है, वह यह है कि यहाँ बहस स्थायी और अस्थाई तौर पर उपलब्ध पाम ऑयल के बीच होनी चाहिए, पाम ऑयल और बिना पाम ऑयल के बीच नहीं।

इस विषय में, राउंडटेबल ऑन सस्टेनेबल पाम ऑयल (आरएसपीओ) के इंडिया रिप्रेजेंटेटिव कमल प्रकाश सेठ कहते हैं, “दुनिया में 90 फीसदी पाम ऑयल का उत्पादन सतत रूप से होता है। इस क्षेत्र में कई अग्रणी कंपनियाँ हैं, जिनके इक्विटी रिटर्न 24.7 प्रतिशत अंकों के उच्चतर स्तर पर हैं। आज सूरजमुखी, सरसों, सोयाबीन आदि जैसे तेलों की तुलना में पाम ऑयल सबसे अधिक उपयोग में लाया जाता है। यह एक पसंदीदा तेल है, क्योंकि ये सस्ते होने के साथ ही संसाधनों का भी कम इस्तेमाल करते हैं। पाम ऑयल कई गुणों से परिपूर्ण होने के अलावा इसकी उत्पादन क्षमता भी उच्च होती है।”

palm oil pros and cons

आरएसपीओ, एक गैर-लाभकारी संस्था है, जिसका लक्ष्य एक साझे उद्देश्य के साथ पाम ऑयल की आपूर्ति श्रृंखला में सभी हितधारकों को मजबूत करना है। एक सुदूरवर्ती गाँव में सतत खेती करने वाले किसानों से लेकर कॉरपोरेट जगत तक, जो शुद्ध पाम ऑयल का इस्तेमाल करते हैं, आरएसपीओ उन विविध हितधारकों को एक साथ लाकर एक ऐसी जगह का निर्माण करता है, जहाँ पाम ऑयल से न तो पर्यावरण को कोई नुकसान हो और न ही स्थानीय समुदायों की आजीविका को।

पिछले 15 वर्षों से, आरएसपीओ प्रकृति संरक्षण हेतु विश्वव्यापी कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ), संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) और सेंटर फ़ॉर रिस्पॉन्सिबल बिज़नेस (सीआरबी), हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड, एएके कमानी जैसी संस्थाओं के साथ काम कर रहा है। इसके तहत वे इस तथ्य की वकालत कर रहे हैं कि सस्टेनेबल पाम ऑयल का उत्पादन पर्यावरण और जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालते हैं।

भारत में कई संगठनों ने पहले ही आरएसपीओ आपूर्ति श्रृंखला प्रमाणन हासिल करते हुए सतत व्यापार रणनीति को तैयार कर लिया है और उन्होंने निकट भविष्य में उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता और संवेदनशीलता बढ़ाने पर जोर दिया है। हाल ही में, आरएसपीओ ने ऐसे कारोबारों के प्रतिनिधियों से बातचीत की, जिन्होंने अपने कारोबार में सतत व्यवहारों को अपनाने के लिए रूपरेखा तैयार की है।

कोरोना महामारी के बाद की दुनिया में सतत व्यवसायों की आवश्यकता

आज पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है। इस वैश्विक महामारी ने जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को एक नई धार दी है। एक अभूतपूर्व संकट का सामना करने के बाद, व्यवसाय, कोरोना महामारी के बाद की दुनिया के लिए सतत अभ्यासों को अपनाने की दिशा में तेजी से अपने कदम बढ़ा रहे हैं।

इसका निष्कर्ष हमेशा समान ही रहा है – “लाभ के कारोबार” के स्थान पर “उद्देश्यों के साथ कारोबार”।

संकट की इस घड़ी से निकलने के लिए, विश्व स्तर पर व्यापार को एक नए व्यवहार के साथ आगे बढ़ाने की योजना बनाई जा रही है। ठीक वैसे ही जैसे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा प्रस्तावित सतत विकास लक्ष्यों के तहत निर्धारित की गई है। प्राकृतिक संसाधनों का एक सार्थक उपयोग इसी परिवर्तित एजेंडे के आधारित है।

आपदा में अवसर

palm oil pros and cons

सीआरबी इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रिजित सेनगुप्ता कहते हैं, “आपदा हमेशा एक अवसर लेकर आती है, यह व्यवसायों को मौकों को तलाशने और सस्टेनेबिलिटी के मुद्दे पर चर्चा करने का अवसर प्रदान करने के साथ ही हमारी गतिविधियों के माध्यम से सतत विकास के विषयों को मुख्यधारा से जोड़ने में मदद करती है।”

उन्होंने अपने भाषण में ‘हितधारक पूंजीवाद’ शब्द का भी इस्तेमाल किया। आज के दौर में, व्यवसाय शेयरधारक पूंजीवाद के स्थान पर इस नीति का पालन करते हैं। जबकि बाद में सीमित देयता के साथ पूंजी को संयोजित करने पर ध्यान केन्द्रित करते हैं। पूर्व में एक ऐसी आर्थिक प्रणाली को विकसित किया जाता है, जहाँ व्यवसायों को अपने सभी हितधारकों के सर्वोत्तम हितों को सुनिश्चित करना होता है।

एएके कमानी, जो कि एक फूड कंपनी है और इसने भारत में सबसे पहले आरएसपीओ आपूर्ति श्रृंखला का सर्टिफ़िकेट हासिल किया है। कंपनी का उद्देश्य है – सभी के लिए पोषण।

उनके कच्चे माल की खरीद में पाम ऑयल सबसे मुख्य है। कंपनी के मालिक प्रकाश चावला कहते हैं कि एक पूंजीवादी व्यवस्था में बहुत कम कंपनियाँ अपने पर्यावरणीय प्रभाव पर नजर रखती हैं और अपने कारोबार में सतत व्यवहारों को अपनाती है, ऐसी चीजें हमारे साथ कभी नहीं हुई।

वे सभी कंपनियों को अपने पर्यावरण पदचिह्नों का पता लगाने और नियंत्रित करने के महत्व को दोहराते हुए कहते हैं, “स्थिरता लाने के लिए और जीवन में सतत व्यवहारों को अपनाने के लिए हमें खुद को एक साथ लाने की जरूरत है।”

कमजोर वर्गों के सशक्तिकरण के साथ सस्टेनेबिलिटी को एकीकृत करना

palm oil pros and cons

हाल ही में, ‘फ्यूचर-प्रूफिंग बिजनेसेज इन पोस्ट कोविड -19 वर्ल्ड’ के विषय पर आधारित एक वेबिनार में, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया की सस्टेनेबल बिजनेस के निदेशक भावना प्रसाद ने कुछ चिंताजनक आंकड़े पेश किए। वह कहती हैं कि आज पृथ्वी पर उपलब्ध संसाधनों की मानवीय खपत पुनर्जनन की गति से 1.6 गुना अधिक है।

आज धरती पर लगभग 80 प्रतिशत वन भूमि के नष्ट होने से यह हमारे सामने एक जलवायु आपातकाल के रूप में उभरा है, जिसने कोरोना महामारी के तबाही में इजाफा किया है। आज हमें पर्यावरणीय संकटों की रोकथाम के लिए अपने सामूहिक कार्यों का पुनर्मूल्यांकन करने की जरूरत है। आरएसपीओ प्रमाणन के साथ उपलब्ध पाम ऑयल को अपनाना, उपभोक्ता व्यवसायों के सतत लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में एक सफल कदम साबित हो सकता है।

मनोरमा इंडस्ट्रीज, पिछले छह दशकों से छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्य प्रदेश और कई अन्य राज्यों में आदिवासी समुदायों के सशक्तिकरण के दिशा में कार्य कर रही है। उन्होंने साल के बीज, महुआ के बीज और आम की गुठली से खाने योग्य बसा और मक्खन निकाल कर उन्होंने कई उत्पादों का निर्माण किया, जिसे वैश्विक स्तर पर पहचान मिली। कहने की जरूरत नहीं है कि मनोरमा इंडस्ट्रीज ने आगे बढ़कर व्यावसायिक जोखिमों के प्रबंधन के लिए आरएसपीओ की सदस्यता और आपूर्ति श्रृंखला का सर्टिफेशन हासिल किया।

हालाँकि, उन्होंने हमेशा पर्यावरण के अनुकूल तकनीकों प्राथमिकता के तौर पर अपनाया है, कंपनी का अगला लक्ष्य हर कदम पर सतत तकनीकों को एकीकृत करना है, जिससे आदिवासी महिलाओं और पुरुषों के लिए रोजगार के अवसर पैदा होंगे।

अपने आर्थिक दृष्टिकोण का पुनर्मूल्यांकन 

palm oil pros and cons

‘टेक-मेक-डिस्पोज’ – विकास का वह पैटर्न जिसका अनुसरण पूरी दुनिया करती है और जिसकी वजह से आज हम पर्यावरण से संबंधित कई गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। यूएनईपी ने भारत समेत पूरी दुनिया के व्यवसायों से आर्थिक विकास के लिए अधिक तर्कसंगत दृष्टिकोण अपनाने का आग्रह किया है, जिसमें पर्यावरणीय चिन्ताओं का ध्यान रखा जाता हो।

उष्णकटिबंधीय वर्षावनों पर प्रतिकूल प्रभाव का सामना करने के लिए आरएसपीओ सर्टिफिकेशन प्राप्त करना अनिवार्य करना चाहिए, ताकि लाखों एकड़ में फैले ताड़ के बागान की रक्षा हो सके।

हरित निवेश, जो सतत उत्पादन और खपत के मानकों के साथ संरेखित होता है; धरती के बेहतर और अधिक सुरक्षित भविष्य में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। 

इस बारे में रबोबैंक के कार्यकारी निदेशक अरिंदम दत्ता कहते हैं, “वित्तीय संस्थान, ग्रीन बिजनेसेज में अधिक निवेश, ईसीजी लेंस और फ्रेमवर्क को लागू और उन्हें स्थायी निवेश निर्णय लेने में मदद कर, सतत व्यवसायों को बढ़ावा देने में काफी मदद कर सकते हैं।”

हमें अपने आर्थिक तरीकों को तत्काल एक बार फिर से अवलोकन करने की जरूरत है, ताकि विपदा के समय में हम इससे उबर सकें। पिछले 15-16 वर्षों के दौरान, दुनिया भर के कई व्यवसायों ने चुनौतियों को समझते हुए सतत तौर पर विकसित पाम ऑयल के विकल्प को चुना है। हालाँकि, इसे इसे मुख्यधारा में लाने की जरूरत है। तभी आरंगुटान और अन्य लुप्तप्राय जानवर अपने परिवारों के साथ शांति से रह सकते हैं, जबकि हम अपने प्रियजनों के साथ अपराध-मुक्त आइसक्रीम का मजा ले सकते हैं।

यह भी पढ़ें- आपके 50% किराने के सामान में होता है पाम ऑइल, लेकिन क्या यह टिकाऊ है? 

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

Let us know how you felt

  • love
  • like
  • inspired
  • support
  • appreciate
X