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स्कालरशिप के पैसो से शौचालय बनाकर गाँव को दी स्वच्छता की मिसाल!

ग्रामीण सभ्यता की अधिकता के कारण हमारे देश में घने जंगल, खुले मैदान एवं जल की उपलब्धता बनी हुई है जिसके कारण खुले में शौच करना बदस्तूर जारी है। लाखों गाँवो की तरह मध्य प्रदेश के गाँव गुरारिया की भी यही स्थिति है। और इस व्यवस्था को नकारने की हिम्मत दिखाई इस गाँव की २१ वर्षीय छात्रा अनीता ने।

ग्रामीण सभ्यता की अधिकता के कारण हमारे देश में घने जंगल, खुले मैदान एवं जल की उपलब्धता बनी हुई है जिसके कारण खुले में शौच करना बदस्तूर जारी है।  लाखों गाँवो की तरह मध्य प्रदेश के गाँव गुरारिया की भी यही स्थिति है। और इस व्यवस्था को नकारने की हिम्मत दिखाई इस गाँव की २१ वर्षीय छात्रा अनीता ने।

अनीता कलेशारिया अष्टा कॉलेज में बी एस सी की द्वितीय वर्ष की छात्रा है। अनीता के पिता रामलाल कलेशारिय एक मजदूर हैं और संपत्ति के नाम पर इनके पास दो एकड़ की एक ज़मीन और दो भैंसे हैं।

अनीता के गाँव में कुछ समय पूर्व एक स्वयं सेवी संस्था द्वारा स्वच्छ भारत अभियान के तहत एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इस में गाँव के लोगो को खुले में शौच करने पर फैलने वाली गन्दगी के साथ साथ होने वाली अन्य समस्याओं पर भी प्रकाश डाला गया ।

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Photo for representation only. Source: sanitation.indiawaterportal.org

इस कार्यक्रम से अनीता बहुत प्रभावित हुई तथा घर पर इसने एक शौचालय बनवाने का प्रस्ताव रखा जिसे इसके माता पिता के द्वारा खारिज कर दिया गया। कारण दो थे – एक तो उनकी आय इतनी अधिक नहीं थी की वे इसका खर्चा उठा सके दूसरा उन्हें इसकी आवश्यकता भी नहीं दिख रही थी क्यूंकि गाँव के अधिकतर लोग खुले में शौच कर ही रहे थे।

इस के बाद भी अनीता ने हार नहीं मानी और स्वयं ही शौच निर्माण का बीड़ा उठा लिया। उसने एक शौच बनाने की विधि उसी स्वयं सेवी संस्था से पूछी जिसके कार्यक्रम में उसने भाग लिया था। पूरी तरह से समझ कर उसने अपने घर के पीछे गढ्ढा तो खोदना आरम्भ कर दिया पर पैसे की समस्या अभी भी वही की वहीँ थी।

ऐसे में अचानक ही उसे पता चला की एस सी वेलफेयर डिपार्टमेंट के द्वारा उसके खाते में ४९९९ रुपये जमा करवाए गए हैं। चूँकि प्रथम वर्ष में ही उसके पिता ने उसकी फीस भर दी थी, उसने इन पैसो को शौचालय बनाने में हो रहे खर्चे में उपयोग करने की ठानी और ३००० रुपये की लागत में इसका निर्माण भी किया। गौरतलब है की गड्ढे खोदने से ले कर सामान एकत्रित करने तक का सारा काम अनीता ने अपने परिवार की मदद से स्वयं ही किया।

अनीता के इस कदम ने उसके गाँव के अन्य लोगों को भी शौचालय बनाने को प्रेरित किया और आज की तारीख में ६०० परिवारों में ७० शौचालय का निर्माण हो चूका है।

यूँ तो यह कदम छोटा था किन्तु सामाजिक व्यवस्था की दृष्टि से यह एक प्रभावशाली पहल थी। आज शहर में बैठ कर बदलाव लाने की सोच रखने वाले से अधिक समाज को आवश्यकता है दृढ़ता से छोटा ही सही पर साहसिक कदम उठाने वालो की। एक छोटी सी उम्र में इस बदलाव लाने की सोच रखने वाली अनीता के साथ साथ हम उस स्वयं सेवी संस्था की भी प्रशंसा करते हैं जिसकी एक छोटी पहल से आज उस गाँव की स्थिति बदल रही है।

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