अमेरिका में २ लाख प्रति माह की नौकरी छोड़, अपने गाँव की सेवा में लगा है ये ‘यंग गाँधी’!

तमिल नाडु के थेंनुर गाँव में रहने वाले सेंथिल गोपालन किसी भी गाँव वाले की तरह सादगी की ज़िन्दगी जी रहे है। फिर इस आम से दिखने वाले गाँव के साधारण नागरिक में ऐसा क्या है की लोग उन्हें 'यंग गांधी' याने की 'युवा गांधी' कहकर बुलाते है?

तमिल नाडु के थेंनुर गाँव में रहने वाले सेंथिल गोपालन किसी भी गाँव वाले की तरह सादगी की ज़िन्दगी जी रहे है। फिर इस आम से दिखने वाले गाँव के साधारण नागरिक में ऐसा क्या है कि लोग उन्हें ‘यंग गांधी’ याने की ‘युवा गांधी’ कहकर बुलाते है?

स साल पहले सेंथिल गोपालन इसी गाँव से निकलकर अपनी काबिलियत से अमेरिका के एक कंपनी में आराम की नौकरी कर रहे थे। पर ये उनका अपने गाँव के प्रति कर्तव्य भाव और प्यार ही था जो उन्हें यहाँ दुबारा खीच लाया। और इन दस सालो में उन्होंने अपने गाँव में जो बदलाव लाया है वह तारीफ के काबिल है।

तमिल नाडु के त्रिची के पास बसे थेंनुर गांव के सेंथिल जब अपनी नौकरी छोड़कर अपने गाँव की हालत सुधारने आये तब उनकी तनख्वाह दो लाख रूपये प्रति माह थी। वे चाहते तो वही रहकर एक ऐसी ज़िन्दगी बिता सकते थे जो हर किसी का ख्वाब होता है। पर पैसा, शानो-शौकत और विदेश में आराम की ज़िन्दगी, ये सब सेंथिल का सपना कभी भी नहीं था। सेंथिल शुरू से ही पढ़ लिखकर अपने छोटे से गाँव, थेंनुर के लिए कुछ करना चाहते थे।

सेंथिल याद करते हुए बताते है –
“मैंने त्रिची से अपनी स्कूल की शिक्षा और ग्रेजुएशन पूरी की। बंगलुरु में कुछ साल कॉर्पोरेट में काम करने के बाद मुझे 1999 में अमेरिका जाने का मौका मिला।”

इसमें कोई दो राय नहीं है कि हम सभी की तरह सेंथिल भी खूब सारा पैसा कमाना चाहते थे, पर अपने लिए नहीं। सेंथिल सिर्फ इसलिए विदेश गए ताकि वे इतना पैसा कमा सके कि वापस अपने गाँव जाकर उन पैसो से सबकी मदत कर सके।

Senthil lives a simple life and has given up everything he had for betterment of his village.
सेंथिल बहुत ही सादगी भरा जीवन जीते है ! उन्होंने अपनी सारी पूंजी अपने गाँव की बेहतरी में लगा दी !

१९९९ से २००४ तक काम करने के बाद सेंथिल ने इतने पैसे जोड़ लिए कि वे वापस तमिल नाडू लौटकर अपना सपना पूरा कर सके। जब सेंथिल ने वापस आने का फैसला किया तब वे एक बड़ी कंपनी के एक नए बिज़नेस इनिशिएटिव के प्रमुख बना दिए गए थे। पर इस तरह का कोई भी प्रलोभन उनके अपने गांव के प्रति सेवाभाव के आड़े नहीं आया।

सेंथिल कहते है –
“मैंने ये फैसला अचानक नहीं किया था। मुझे हमेशा से पता था की मुझे क्या करना है। विदेश जाना उसी उद्देश्य को पूरा करने का बस एक छोटा सा हिस्सा था।”

2005 में सेंथिल ने ‘पयिर’ नामक एक गैर सरकारी संस्था की शुरुवात की। इस संस्था का उद्देश्य केवल थेंनुर के  बच्चों का ही नहीं बल्कि बड़ो का भी हर क्षेत्र में पूरा विकास करना है ।

अच्छे स्वास्थ की ओर पहला कदम!

Community health centre in the village.
गाँव का कमुनिटी हेल्थ केयर सेंटर

सेंथिल ने अपना पहला कदम थेंनुर के लोगो के अच्छे स्वास्थ के लिए उठाया। उन्होंने गाँव के ही लोगो को इस काम पर लगा दिया और एक छोटा सा दल गाँव में हर किसीको स्वास्थ से जुडी जांच करवाने के लिए प्रेरित करने लगा। और वक़्त पर दवाइयाँ और इलाज भी दिलवाने लगा।

इतना ही नहीं इस संस्था ने पास के शेहरो के अस्पतालों से भी अपना संपर्क बना लिया, ताकि वे कम दामो पर इलाज और दवाईयां मुहैया करवा सके।

सेंथिल समझाते है –
“थेंनुर एक बेहद पिछड़ा हुआ गाँव है। यहाँ कुपोषण की समस्या आम थी। हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण में पता चला कि WHO के स्टैण्डर्ड के हिसाब से 75% सरकारी स्कूल के बच्चों का वज़न सामान्य से कम है और 42% तो बुरी तरह कुपोषित है। और ये आंकड़े इन स्कूलो में मिड डे मील देने के बाद के है। इसका एक बड़ा कारण माता पिता का पोषक खाने के प्रति लापरवाह होना है। गाँवों में ज़्यादातर अभिभावको को सम्पूर्ण आहार के बारे में पता ही नहीं होता। इसके अलावा स्कूल में दिये  जाने वाले खाने में भी सब तरह के पोषक तत्व नहीं होते। स्कूलो में उनके बजट के अनुसार खाना दिया जाता है पोषण के अनुसार नहीं। इसलिए हमें लगा की सबसे पहले हमें इस समस्या का समाधान करना चाहिए।”

इसके बाद सेंथिल ने तमिल नाडु सरकार के साथ मिलकर सरकारी स्कूल की  किशोरी लड़कियों के लिए एक सुप्लीमेंट्री न्यूट्रिशन प्रोग्राम की शरुवात की। इस प्रोग्राम के तहत सेंथिल और उनकी टीम ११ से १७ साल की लड़कियो को दूध और एक तरह का पौष्टिक लड्डू बांटते है। एक लड्डू में कम से कम 450 कैलोरीज होते है।

Payir's building where all the awesomeness happens.
पयिर

फिलहाल पयिर की पहोंच थेंनुर से 60 किलोमीटर के अंदर के १८ स्कूलो की ३,३०० लड़कियों तक है। सेंथिल की टीम रोज़ १२० किलो लड्डू बनाती है और इस बात का ख़ास ध्यान रखती है की ये लड्डू लड़कियों तक समय पर पहुंचे। सरकार इस काम में लगनेवाला अधिकतर खर्च तो देती है पर वह काफी नहीं होता।
इस प्रोग्राम के लिए पयिर का अंदाज़न बजट १.२५ करोड़ है और सरकार की तरफ से करीब ९८ लाख रुपयो की मदत मिलती है।

इसके बारे में सेंथिल ने बताया –
“शुक्र है कि कैच कंपनियां था(जैसे की मेरी पुराणी कंपनी जहा मैं नौकरी करता था) बाकी की रकम देने के लिए खुद ही आगे आती है। हमें कुछ और भी लोगो से इस काम के लिए मदत मिलती है।”

शिक्षा के स्तर को बढ़ाना

Senthil started a school for drop out kids.
सेंथिल ने उन बच्चो के लिए स्कूल खोला जो किस न किसी मजबूरी के कारण पढाई छोड़ चुके थे

दूसरा सबसे महत्वपूर्ण काम था शिक्षा के स्तर को बढ़ाना। जिन बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी थी उनके लिए सेंथिल ने नर्सरी और प्राइमरी स्कूल की शुरुवात की। इस स्कूल में अब ५० बच्चे है और यहाँ एक बहोत ही रोचक तरीके से इन बच्चों को पढ़ाया जाता है ताकि उनकी नीव पक्की हो। इस स्कूल में पढ़ाने के लिए सेंथिल ने इसी गाँव से पांच शिक्षक नियुक्त किये है।
पयिर की टीम कई तरह के प्रशिक्षण का भी इंतज़ाम करती है, जिसमे स्वास्थ, कैरियर की जानकारी, जीवन जीने की कला और लिंग भेद न करने के सुझाव जैसे विषय भी शामिल है। इन सभी प्रशिक्षणों को रोचक बनाने के लिए सेंथिल इनके बीच में खेल का भी आयोजन करते है।

सब कुछ ठीक चल रहा था पर जल्द ही सेंथिल को लगने लगा की बस 50 छात्रो तक पहुँच जाने से कुछ नहीं होगा। और इसलिए उन्होंने सरकारी स्कूलो के साथ संपर्क साधा।

Senthil uses various fun techniques to educate kids.
बच्चो को पढ़ाने के लिए कई रोचक तरीके अपनाये जाते है

इसी काम को और आगे बढ़ाने के लिए, सेंथिल ने 6 से 10 साल के बच्चों के लिए ‘रेजिडेंशियल ड्रॉपआउट चिल्ड्रन प्रोग्राम’ की शुरुवात की। ये प्रोग्राम उन बच्चों के लिए था जिन्हें इतनी छोटी उम्र में किसी मज़बूरी के कारण स्कूल छोड़ना पड़ा था।और इस वजह से उनके बुनियादी मूल्यों का भी विकास नहीं हो पा रहा था। इस प्रोजेक्ट में इस साल के अंत तक करीब 30 बच्चों के आने की उम्मीद है।

इसी सन्दर्भ में सेंथिल ने हमें दीपा नामक एक छात्रा के बारे में बताया। दीपा को नौंवी कक्षा के बाद स्कूल छोड़ना पड़ा था। आर्थिक तंगी के कारण वो आगे नहीं पढ़ सकती थी। इस वक़्त पयिर ने दीपा की ओर मदत का हाथ बढ़ाया। इसके बाद दीपा ने न सिर्फ अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी की बल्कि अब वह इंजीनियरिंग की छात्रा है। दीपा की ही तरह और भी कई बच्चे है जो जीवन में आगे बढ़ने की उम्मीद छोड़ चुके थे पर पयिर ने उनके सपनो को पंख लगा दिए। ये सारे बच्चे सेंथिल और उनकी टीम का गुणगान करते नहीं थकते।

सबके लिए रोज़गार 

From an IT company to a small bag making business, Senthil has provided many alternate means of livelihood for the poor.
बैग बनाने से लेकर आईटी कंपनी खोलने तक – सेंथिल ने गाँव वालो के लिए रोज़गार के कई विकल्प खोल दिए

पयिर में रहनेवाले अधिकतर लोग गरीबी रेखा के निचे आते है। स्वास्थ्य और शिक्षा के अलावा जो सबसे ज़रूरी चीज़ इन लोगो के लिए है, वो है रोज़गार मुहैया करवाना। पयिर की टीम ने इन लोगो की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए छोटे छोटे रोज़गार के विकल्प शुरू किये।

इस विषय पर सेंथिल प्रकाश डालते हुए कहते है –
“हम आसपास के किसानो के साथ मिलकर उनकी फसल को नुक्सान से बचाने और उपज बढाने  के तरीको पर काम करते है। इसके लिए हम खुद ५ एकर ज़मीन पर उदाहरण के तौर पर उन्हें खेती करके बताते है। हालाँकि यह एक सूखाग्रस्त इलाका होने की वजह ऐ हमें काफी मुश्किलो का सामना करना पड़ता है पर फिर भी हम खेती के इस व्यवसाय को बढ़ावा देना चाहते है।

थेंनुर और उसके आसपास के इलाके सूखाग्रस्त क्षेत्र में आते है। इसी वजह से यहाँ पर कोई भी पूरी तरह खेतीबाड़ी पर निर्भर नहीं रह सकता। इसी बात को मद्देनज़र रखते हुए पयिर ने गाँववालो के लिए  रोज़गार के और भी विकल्प ढूंड निकाले। ताकि यदि मौसम के साथ न देने पर खेती में नुक्सान हो तब भी वे किसी और रोज़गार के ज़रिये अपना खर्च चला सके।

इसके लिए पयिर ने गाँववालो की मदत से ही कई रोज़गार के विकल्प ढूंढ निकाले। जिनमे फ़ूड प्रोसेसिंग, सिलाई और यहाँ तक की IT और BPO भी शामिल है।

And people can't thank Senthil and his team enough for their amazing work.
गाँव वाले सेंथिल और उनकी टीम का गुणगान करते नहीं थकते

सेंथिल की आवाज़ में एक अलग ही जोश था, जब उन्होंने बताया –
“हमने महिलाओ के भी स्वमसेवी दल बनाये जो खुद ही बैग बनाती है और बेचती है। हमारे पास कुछ रिटेलर भी है जो ये सामान खरीदते है। पर फिर भी हमें और ग्राहकों की ज़रूरत है जो हमारे फ़ूड प्रोसेसिंग,IT और BPO सेवा और हमारे बनाये बैग भी खरीदे। जितने ज़्यादा ग्राहक होंगे हम उतने ज़्यादा लोगो को रोज़गार दे पाएंगे।”

सेंथिल की आई टी कंपनी थेंनुर में ही एक नारियल के बागान के बीचोबीच स्थित है। इस कंपनी में इसी गाँव से ग्रेजुएट हुए चार युवा काम करते है। फिलहाल वे अमेरिका के एक क्लाइंट के लिए $2500 का एक प्रोजेक्ट कर रहे है।

क्यों न कुछ कदम और चले।

The students have found new ways to achieve their dreams.
इन बच्चो को अपने सपने पुरे करने की एक नयी राह मिली

सेंथिल के सादगी भरे जीवन और उनके “सादा जीवन, उच्च विचार” की विचारधारा की वजह से यहाँ लोग उन्हें  ‘यंग गांधी’ याने ‘ युवा गांधी’ कहते है। सेंथिल गांधीजी के पदचिन्हों पर चलते है और कहते है की बदलाव जड़ से होना चाहिए न की ऊपरी तौर पर।

“गाँव के लोगो के लिए भी शेहरो जितने रोज़गार के विकल्प होने चाहिए। उन्हें भी एक बेहतर ज़िन्दगी जीने का मौका मिलना चाहिए।”
– सेंथिल

सेंथिल ने अपनी पूरी पूंजी लगाकर सिर्फ 10 पंचायतो से शुरुवात की थी। और आज और भी लोगो की मदत से वे और उनकी संस्था 39 पंचायतो के साथ काम कर रहे है।

सेंथिल मानते है –

“मुझे लगता है बड़े बड़े कॉर्पोरेट कम्पनियो के बजाय अगर हर एक इंसान हमारी इस मुहीम में मदत करे तो वे भी इस नेक काम का हिस्सा बन सकते है।”

सिर्फ 8 लोगो से शुरुवात करनेवाले पयिर में अब 100 लोग काम करते है। ये टीम करीबन 4500 बच्चों और 8000 बड़ो तक पहुच चुकी है। और ये आंकड़ा हर साल बढ़ता चला जा रहा है।
भविष्य में पयिर की टीम राज्य स्तर पर काम करना चाहती है। वे बच्चों के स्वास्थ संबंधी कार्यक्रमो पर और अधिक काम करना चाहते है। सेंथिल गाँव के युवाओ के बेहतर भविष्य के लिए भी काम करना चाहते है।

अपनी हिम्मत और लगन से सेंथिल एक लंबा और कठिन रास्ता तय करके यहाँ तक पहुचे है। आप भी सेंथिल के इस मिशन में शामिल हो सकते है, न सिर्फ आर्थिक मदत करके बल्कि उनके साथ काम करके भी।
अधिक जानकारी के लिए उन्हें senthil@payir.org  पर ईमेल करे। या पयिर की वेबसाइट पर जाए।


 

मूल लेख – श्रेया पारीक 

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