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बायलाकुप्पे: कर्नाटक के तिब्बती कस्बे की एक यात्रा!

निर्वासित तिब्बती सरकार की राजधानी होने के कारण अधिकांश यात्री हिमाचल प्रदेश में स्थित धर्मशाला में शांति और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए जाते हैं. बहुत ही कम लोगों को

निर्वासित तिब्बती सरकार की राजधानी होने के कारण अधिकांश यात्री हिमाचल प्रदेश में स्थित धर्मशाला में शांति और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए जाते हैं.

बहुत ही कम लोगों को पता होगा कि धर्मशाला से बाहर सबसे अधिक तिब्बती जनसँख्या वाला स्थान कर्नाटका में है. बायलाकुप्पे नाम का ये अन्जाना सा क़स्बा मैसूर से 90 किमी दूर राज्य राजमार्ग संख्या 88 पर स्थित है. बायलाकुप्पे दो तिब्बती शरणार्थी स्थलों को मिलकर बना है जो 1961 और 1969 में स्थापित किये गए थे. समय के साथ साथ अब ये सम्पूर्ण तिब्बती उपनगर बन गया है.

मैसूर के पास होने की वजह से बायलाकुप्पे मेरी पसंदीदा जगह है. यहाँ के लिए बस आसानी से मिल जाती है. दो घंटे बस के बाद SH88 से आधे घंटे की सुखद पैदल यात्रा, जिसमें आप इस जगह के मनोरम दृश्यों का आनंद उठाते आयेंगे, आपको इस कस्बे में ले आएगी.

बस के पड़ाव से तिब्बती कैंप की यात्रा बहुत ही सुन्दर है. जैसे जैसे आप एक एक कदम बढ़ाएंगे, आपको एहसास होता जायेगा कि हर कदम के साथ प्राकृतिक परिदृश्य बदल रहा है. मठों की ओर बढ़ते हुए ऐसा लगता है मानो हर कदम के साथ आप एक नए देश में प्रवेश कर रहे हों. बिजली के खम्भों से बंधे हुए रंग-बिरंगे तिब्बती झंडे हवा में फडफडाते रहते हैं. साइनबोर्ड वगैरा पर अंग्रेजी और कन्नड़ के साथ साथ तिब्बती लिपि में भी लिखा होता है. टाइल वाली छतों वाले घर अलग ही लगते हैं और जैसे जैसे आप टेढ़ी मेढ़ी गलियों में आगे बढ़ते है, तिब्बती मूल के लोगों की संख्या बढती जाती है. इस इलाके में पहाड़ नहीं है, लेकिन यहाँ की नीरव शांति और सुन्दरता में धीरे धीरे कदम बढाते हुए ऐसा ही लगता है मानो हम किसी हिल स्टेशन पर आ गए हों.

धीरे धीरे मठ की इमारतें एक के बाद एक करके दृष्टिगोचर होने लगती हैं. चूंकि, इन इमारतों की निर्माण शैली मैसूर और मदिकेरी के रास्ते के इलाके की बाकी इमारतों से बिलकुल अलग है, इसलिए इन्हें देखना एक अलग ही एहसास होता है.

यहाँ का सबसे प्रसिद्द मठ नामद्रोलिंग है, जो कैंप नंबर 4 में स्थित है. यही वजह है कि यहाँ से होकर नीलगिरि जाने वाले और वहाँ से वापस आने वाले अधिकतर पर्यटक यहीं आकर रूकते हैं. मठ के बहर एक कंक्रीट का चमकता धमकता शॉपिंग काम्प्लेक्स है, जो यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता के बीच में आँखों को अखरता है.

Namdroling monastry

नामद्रोलिंग मठ के मंदिर प्रवेश का दृश्य देखते ही बनता है.

The Lord Buddha

भगवा बुद्ध, इनके एक ओर भगवा पद्मसंभव और दूसरी ओर भगवा अमितायस हैं

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लेकिन 180 डिग्री मुड़ते ही मठ के सुनहरे मंदिर का द्रश्य देखते ही आप कंक्रीट के इस महाराक्षस को भूल जायेंगे और मठ के बाहर लगे प्रार्थना चक्रों को घुमाना शुरू कर देंगे.

बौद्ध धर्म के अनुयायियों का मानना है की प्रार्थना चक्रों (जिनके अंदर प्रार्थना लिखे कागज हैं) को घुमाना प्रार्थना करने के समतुल्य है. प्रार्थना का यह तरीका निर्वाण का एक शॉर्टकट लगता है पर यह समावेशिता को बढाता है. अनपढ़, गरीब, अध्यात्मिक पर्यटक, मैरून कपड़ों वाला भिक्षु और कभी कभी आने वाले भक्तगण, सभी को ये चक्र पुण्य कमाने का बराबर मौका दे देते हैं. चक्र इतने सारे हैं कि कोई अनफिट आदमी अगर सारे चक्रों को पहली बार घुमाये तो उसके हाथ में दर्द हो जाये.

 

prayer wheel

तिब्बती बौद्ध मान्यता के अनुसार चक्रों को घुमाना प्रार्थना करने के समान प्रभावी है

 

मठ में मंदिर, पुस्तकालय के अलावा सभी भिक्षुओं के लिए आवास भी है. अगर आपका दिन अच्छा है और भीड़ ज्यादा नहीं है तो आपको मंदिर के अन्दर बैठने का मौका मिल सकता है जहाँ आप चिड़ियों के चहक और अगरबत्तियों के महक के बीच आँखें बंद कर ध्यान साधना कर सकते हैं किसी किसी दिन आपको भिक्षुओं द्वारा समवेत स्वर में मंत्रपाठ भी सुनने को मिल सकता है.

पहले मंदिर में स्थित मूर्तियों के पास जा सकते थे, पर हाल फिलहाल मंदिर के अधिकतर हिस्से को घेर लिया गया है. आपके स्वतन्त्र विचरण का क्षेत्र काफी कम हो गया है.

नामद्रोलिंग मठ में तसल्ली से घूमने पर आधा दिन लग जायेगा लेकिन बायलाकुप्पे में और भी दर्शनीय स्थल हैं. मठ से दो किलोमीटर दूर कैंप नंबर 1 में सेरा मे और सेरा जे मठ है, जहाँ जाने के लिए आप ऑटोरिक्शा ले सकते हैं या करीब बीस मिनट में गलियों में से गुजरते हुए परंपरागत तिब्बती घरों को देख सकते है, जिनसे आपको ल्हासा का अंदाजा लग सकता है. तिब्बती लिखावट और दरवाजे पर रंगीन झंडों वाले इन घरों को देखना मठ को देखने जितना ही रुचिकर है.

 

Two more temples

मठ के दो और मंदिर. इन छोटे, शांत मंदिरों में अकसर भिक्षु ध्यान साधना करते हैं

कम भीड़-भाड़ वाले सेरा मठों में मौका लगा तो आप सीढ़ियों पर बैठकर भिक्षुओं से टूटी फूटी हिंदी, अंग्रेजीं (और कभी कभी कन्नड़) में बात कर सकते हैं और जीवन के बारे में आपके सवालों का मुस्कुराकर जवाब देंगे. किसी भी चुहल वाली बात पर उनकी निर्बाध हंसी आपको बता ही जाती है कि आप जब भी यहाँ आयेंगे, आपका स्वागत दिल खोलकर होगा.

खाने की बात करें तो मुख्यतः आपको अलग अलग तरह का ठुकपा (तिब्बती नूडल सूप) मिलेगा. चुनिन्दा दुकानों में आपको डिम-सम भी कभी कभी मिल जायेगा. जो लोग खाने को लेकर ज्यादा प्रयोग नहीं कर सकते उन्हें हाईवे पर और टूरिस्ट काम्प्लेक्स में दक्षिण भारतीय भोजन आसानी से मिल जायेगा.

अगर आप एडवेंचर और रोमांच ढूँढ रहे है तो बायलाकुप्पे आपके लिए बेहतर जगह नहीं है. हाँ, अगर आपको किसी शांत जगह पर समय बिताना है, जहाँ आध्यात्मिकता और नैसर्गिक प्राकृतिक सौंदर्य के दृश्य हो  तो बस पकडिये और वहाँ पहुँच जाइये.

 

मूल लेख: हरी शेनॉय

रूपांतरण: अदित्य त्यागी


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