यह पूर्व सैनिक और उनकी पत्नी आज भी छोटी-छोटी खुशियाँ बाँटकर, कर रहें हैं देश-सेवा!

महाराष्ट्र के एक छोटे से शहर, चंद्रपुर में रहते हुए भी एक सेवानिवृत्त सैनिक देश की सेवा का अपना धर्म निभाता चला जा रहा है। और इस महान कार्य में उनकी पत्नी कंधे से कंधा मिलाकर उनका साथ दे रही है। छोटे छोटे बदलाव से भारत को बेहतर भारत बनाने वाले निहार और सपना हलदर से मिले।

महाराष्ट्र के एक छोटे से शहर, चंद्रपुर में रहते हुए भी एक सेवानिवृत्त सैनिक देश की सेवा का अपना धर्म निभाता चला जा रहा है। और इस महान कार्य में उनकी पत्नी कंधे से कंधा मिलाकर उनका साथ दे रही है। छोटे छोटे बदलाव से भारत को बेहतर भारत बनाने वाले निहार और सपना हलदर से मिले।

निहार और सपना हलदर
निहार और सपना हलदर

निहार ने भारतीय थल सेना में इ.एम्.इ कॉर्प के नाते वेहिकल मेकैनिक का काम करते हुए ९ साल तक देश की सेवा की। १९८९ में श्रीलंका में भेजे ‘इंडियन पीस कीपिंग फ़ोर्स’ का भी वे हिस्सा रह चुके है। उस दौरान हुए भयावय घटनाओ को याद करके आज भी उनके आँखों में आंसू आ जाते है।

सेना की वर्दी मे निहार हलदर
सेना की वर्दी मे निहार हलदर

“श्रीलंका मिशन के दौरान सेना में मेरा एक बहोत अच्छा मित्र हुआ करता था। हम दोनों रोज़ की तरह सुबह मिले और फिर अपने अपने निर्धारित क्षेत्र की ओर निकल पड़े। उसी रात जब वो वापस नहीं आया तो ढूंढने पर हमें उसके मृत शरीर के टुकड़े चारो तरफ से मिले।”
-निहार हलदर

   पर इन घटनाओ ने उन्हें और मज़बूत बना दिया।

“सेना में हमें हर बात की ज़िम्मेदारी स्वयं लेना सिखाया गया। यदि आपके आसपास कुछ गलत हो रहा है तो उसकी आलोचना करने के बजाये उसका ज़िम्मा लेना ज़रूरी है।मेरे ख्याल से भारत के हर नागरिक को सेना का प्रशिक्षण मिलना चाहिए।”
– निहार

सेना से सेवानिवृत्त होने पर निहार ने चंद्रपुर, महाराष्ट्र में एक छोटे से किराने की दूकान खोल ली। वे, उनकी पत्नी सपना, जो की एक शिक्षिका थी और दोनो बच्चे, निशा और शुभेंदु, अपनी छोटी सी दुनिया में आराम से रह रहे थे। पर ये जोड़ा जो स्वभाव से समाजसेवी थे इस तरह खुश नहीं थे। समाज के लिए कुछ करने की इच्छा उनके मन को कचोट रही थी। ऐसे में एक दिन उन्हें ‘संकल्प’ नामक संस्था से जुड़ने का मौक़ा मिला। इस संस्था का समाजसेवा का तरीका बड़ा ही अनोखा था। वे आस पड़ोस से रद्दी व् कबाड़ जमा करके उन्हें बेचकर आये पैसो को गरीब तथा विकलांग बच्चों के विद्यालयो में दान किया करते थे। इसी तरह पैसे जोड़कर सन् २०११ में वे इन बच्चों को राष्ट्रपति भवन भी ले गए थे।

राष्ट्रपति के साथ निहार और सपना
राष्ट्रपति के साथ निहार और सपना

जिन बच्चों ने कभी घर से बाहर निकलने के बारे में भी नहीं सोचा था उनके लिए ये एक अद्भुत अनुभव था।

इसी संस्था के साथ मिलकर निहार और सपना ने चंद्रपुर के जेल में श्री रमेश भाई ओझा द्वारा आध्यात्मिक प्रवचन का भी आयोजन किया।

“हम संकल्प के श्रीमती उमा चौहान, श्री चितेष पोपट, श्री हँसमुख ठक्कर, श्रीमती उषा मेश्राम, पूर्णिमा तोड़े तथा दिलीप राठी के सहयोग को कभी नहीं भुला सकते जिनकी वजह से हमारी यह यात्रा शुरू हुई।”
– निहार एवम् सपना हलदर

समाजसेवा की उनकी ये यात्रा यहाँ समाप्त नहीं बल्कि शुरू ही हुई थी।

१६ जुलाइ २०१३ को बाढ़ ने पुरे चंद्रपुर को अपनी चपेट में ले लिया। हज़ारो लोग रातो रात बेघर हो गए। निहार और सपना जानते थे कि वे इस वक़्त सरकार या किसी संस्था की मदत के इंतज़ार में नहीं रुक सकते। उन्होंने तुरंत अपने भाई नितीश हलदर, दोस्त मुकेश वाळके तथा आर.के शुक्ला की सहायता से अपने दूकान में रखे सामग्री से खाना बनाना शुरू कर दिया। रात भर करीब १०० किलो खाना बनाया गया तथा उन्हें प्लास्टिक की थैलियो में समान मात्रा में पैक किया गया। सुबह सूरज उगते ही निहार और सपना बाढ़ग्रस्त इलाके में यह खाना बांटने चल दिये। बिना धर्म, जाती या भाषा का भेद किये ये खाना सभी में बांटा गया। वही कई बच्चों और महिलाओ को कपड़ो की भी ज़रूरत थी। अगले ही दिन इस जोड़े ने घर घर से कपडे मांगकर , उन्हें धोकर व् इस्त्री करके बाँट दिए।

बाढ़ के दौरान लोगो की सेवा करते हलदर दंपत्ति
बाढ़ के दौरान लोगो की सेवा करते हलदर दंपत्ति

इस घटना से निहार और सपना का मनोबल और बढ़ा। अब उन्होंने समाज के कल्याण हेतु जितना हो सके उतना करने की ठान ली।

कई बार कुछ बड़ा करने की चाह में हम उन छोटी छोटी चीज़ों की कदर करना भूल जाते है जो हमारे आसपास हो रही है।पर निहार और सपना इन छोटी छोटी उपलब्धियों को मान देना जानते थे।

भैयालाल – एक आदर्श पिता की मिसाल

भैयालाल की चाय की छोटी सी दूकान, निहार की दूकान के ठीक सामने है। निहार इस बात से हैरान थे की भैयालाल की दूकान कभी बंद नहीं होती। वह दिन रात दूकान में काम करता है। इसका कारण पूछने पर भैयालाल ने बताया की उनका बड़ा बेटा सिविल इंजीनियरिंग कर रहा है, छोटी बेटी, राखी बारवी कक्षा में है और आगे पढ़ना चाहती है और सबसे बड़ी बेटी, गीता के दिल में छेद है। इन सबका खर्च निकालने के लिए वह रात भर भी काम करता है। गीता सारा दिन अपने पिता के साथ ही दूकान में बैठकर किताबे पढ़ती थी। और अपनी व्यस्तता के बीच भी भैयालाल समय समय पर उससे पूछते सुनाई देते, “बिटीया क्या होना? बिटिया क्या खायेगी?”

यह दृश्य देखकर निहार चकित रह गए। उन्होंने कई ऐसे खातेपीते घर देखे थे जहाँ बेटियो की अवहेलना की जाती थी। पर इतने अभाव में भी अपनी मृत्युमुखी बेटी का इतना ख्याल रखने वाले भैयालाल उन्हें अनोखे लगे।

बाँये से दाँये - निहार, भैयालाल, राखी और गीता (भैयालाल की बेटियाँ)
बाँये से दाँये – निहार, भैयालाल, राखी और गीता (भैयालाल की बेटियाँ)

इतना ही नहीं, आर्थिक तौर पर इतनी दिक्कते होने के बावजूद भैयालाल कुछ बिस्किट के पैकेट अपने आसपास के कुछ बेज़ुबान बंदरो के लिए रखना नहीं भूलते थे।

भैयालाल- बंदरो को खिलाते हुए
भैयालाल- बंदरो को खिलाते हुए

भैयालाल की कहानी से प्रभावित होकर निहार और सपना ने हर उस व्यक्ति को सम्मान्नित करने का निर्णय लिया जो की साहस तथा त्याग की प्रतिमूर्ति है।

“हमें अपने पिता पर बेहद गर्व है। वे हमारी ज़रूरतो को पूरा करने के लिए रात भर काम करते है। अगर नींद आये तो चाय पीकर थोड़ी देर चल लेते है पर सोते नहीं। जब उन्हें सम्मान्नित किया गया तो हमें बहोत ख़ुशी हुई की कोई और भी उनके इस त्याग की कद्र करता है।”
– गीता और राखी ( भैयालाल की बेटियां)

 

साधना की हिम्मत की कहानी

साधना मुख़र्जी सिर्फ ३५ साल की ही थी जब उन्होंने अपने पति को खो दिया। उनके पति एक चाय का ठेला चलाते थे। पति की मृत्यु के बाद ये सहज था की अपने दो छोटे छोटे बच्चों को पालने के लिए साधना उसी चाय के ठेले में काम करती। और उन्होंने किया भी। पर ये इतना आसान नहीं था जितना हम और आप सोच रहे है। क्यों की ये चाय का ठेला एक शराब की दूकान के ठीक सामने था। साधना जैसी कम उम्र महिला के लिए इस माहौल में काम करना इतना सहज नहीं था। पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और इसी चाय की दूकान को चलाकर ही अपने बच्चों को पाला।

साधना मुखर्जी
साधना मुखर्जी

“मैं पढ़ी लिखी नहीं हूँ। कही और ठेला जमाना भी इतना आसान नहीं था। आखिरकार मजबूरन मैंने उसी ठेले को चलाया जिसे मेरे पति चलाते थे। हलदर दंपत्ति के मुझे सम्मान्नित करने से बेशक मेरी मुश्किलें तो कम नहीं हुई। पर हाँ मुझे आगे बढ़ने की हिम्मत ज़रूर मिली। आज तक लोग मुझे मेरे काम के लिए ताना ही देते थे। ये पहली बार था की किसीने मुझे सराहा था।”
– साधना मुख़र्जी

हलदर दंपत्ति लोगो के अच्छे काम को सम्मान्नित करने तक ही अपने आप को सिमित नहीं रखते। वे स्वयं भी ऐसे छोटे छोटे सम्माननीय कार्य करते है।

अंजना बाई बेहरे ८२ साल की एक वृद्धा है जिनका कोई नहीं है। एक बार किसीने उन्हें निहार की दूकान से कुछ खाने का सामान खरीद कर दिया। बाद में निहार को पता चला की जो शख्स अंजना बाई को सामान ले देते थे वे अब किसी कारणवश उन्हें महीने में सिर्फ ३५०रु ही दे पाते है। इसके बाद से निहार उन्हें हर महीने की ३० तारीख को बिना भूले पुरे महीने का राशन मुफ़्त में दे देते है।

पुरस्कार सभा
पुरस्कार सभा

निहार और सपना नियमित रूप से जानकारी सत्र का भी आयोजन करते है। जिसमे सरकार द्वारा गरीबो के हित में बनाये नीतियों की पूरी जानकारी देते है और इनका लाभ उठाने में उनकी मदत भी करते है।

“मैं मानता हूँ कि यदि हम में से हर कोई अपने अपने क्षेत्र की ही छोटी मोटी ज़िम्मेदारी भी ले ले तो धीरे धीरे हमारा समाज बेहतर होता चला जाएगा और एक दिन हर परेशानी मिट जायेगी।”
– निहार हलदर

यदि आप निहार एवं सपना हलदर के इस प्रेरणादायी कहानी से प्रभावित हुए है तो उन्हें शुभकामनाये देने के लिए  ९८६०९५३५६० पर संपर्क कर सकते है।

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