‘मुझे सामान की तरह उठाया गया’- एक दिव्यांग अधिकार कार्यकर्ता की आपबीती से उठी सुविधाजनक रेलवे की मांग!

विराली दिव्यांग अधिकारों की सशक्त कार्यकर्ता हैं। वे लेखिका और अभिनेत्री होने के साथ साथ 2014 की मिस व्हीलचेयर रनर-अप भी रही हैं। उन्हें भारतीय रेलवे के साथ कई बार संघर्ष करना पड़ा, जहां उन्हें दिव्यांग होने की वजह से मजबूरी में पुरुषों द्वारा उठाया गया। विराली अपने साथ घटी इन घटनाओं को बन्द करवाना चाहती हैं।

वो चाहती है कि उसकी आवाज़ देश के प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी सुनें; जिनके साथ वो दिव्यांगों को रेल यात्राओं में होने वाली हर दिन की समस्याएं साझा करना चाहती है।

विराली दिव्यांग अधिकारों की सशक्त कार्यकर्ता हैं। वे लेखिका और अभिनेत्री होने के साथ साथ 2014 की मिस व्हीलचेयर रनर-अप भी रही हैं। उन्हें भारतीय रेलवे के साथ कई बार संघर्ष करना पड़ा, जहां उन्हें दिव्यांग होने की वजह से मजबूरी में पुरुषों द्वारा उठाया गया। विराली अपने साथ घटी इन घटनाओं को बन्द करवाना चाहती हैं।

“मुझे रेलवे के कुली किसी सामान की तरह पकड़कर उठाते थे और कंपार्टमेंट में ले जाते थे और ऐसा एक बार नहीं हुआ तीन बार हुआ। और जब मैं कंपार्टमेंट में पहुँच जाती थी तो मुझे घूरती नज़रों का सामना करना पड़ता था, लोग देखते रहते हैं पर कभी मदद के लिए आगे नहीं आते,” विराली आपबीती सुनाती हैं।

virali 1

जब विराली को पूछा गया कि अगर उन्हें परिवर्तन करने का मौका मिले तो हालिया रेलवे व्यवस्था में क्या बदलाव करेंगी। इस सवाल के जबाब में उनके पास रेलवे को हर व्यक्ति के लिए सुविधाजनक बनाने के लिए महत्त्वपूर्ण बदलावों की एक लिस्ट है।

“सबसे पहले, रेलवे को बेहतर रेम्प बनाने की जरूरत है। रेलवे, दिव्यांग कंपार्टमेंट के लिए डिब्बे नीचे या प्लेटफॉर्म ऊँचे बनाए, जिससे दिव्यांगों को चढ़ने उतरने में परेशानी न हो। उनके पास स्वचालित लिफ्ट होनी चाहिए जो यात्री को कंपार्टमेंट में रोल करते हुए पहुंचा दे, इसके साथ साथ दिव्यांग कंपार्टमेंट के गेट इतने चौडे हों कि व्हीलचेयर आसानी से भीतर तक जा सके। मैंने गौर किया है कि भारतीय रेलों में टॉयलेट भी सुविधाजनक नहीं हैं, दिव्यांग कंपार्टमेंट में सिंक और कमोड इस प्रकार हों कि कोई दिव्यांग व्हीलचेयर से टॉयलेट सीट तक खुद को बिना तकलीफ के शिफ्ट कर सके।”

विराली ने हाल ही में प्रधानमन्त्री और रेलमंत्री तक अपनी बात पहुँचाने के लिए change.org के जरिए पिटीशन अभियान शुरू किया है, ताकि देश के मुखिया इस मामले का संज्ञान ले सकें। याचिका में उन्होंने लिखा है कि अक्सर रेलवे के कर्मचारी दिव्यांगों के साथ सामान के टुकड़े की तरह व्यवहार करते हैं।

विराली की ये याचिका वायरल हो गयी और अब तक इस पिटीशन को देशभर से लगभग 80 हज़ार से ज्यादा लोगों का समर्थन मिल चुका है।

virali 2

विराली का कहना है कि वो सरकार से सीधे इसलिए बात करना चाहती हैं क्योंकि एक दिव्यांग की समस्यायों को एक सामान्य व्यक्ति नहीं समझ पाएगा और इसीलिए असल मुद्दों को सरकार के सामने नहीं रख पायेगा।

“भारत में रहने वाले दिव्यांग हर दिन तमाम समस्याओं का सामना करते हैं। सिर्फ रेलवे की बात नहीं है, बसों और सड़कों सहित पब्लिक ट्रांसपोर्ट की भी बहुत सी समस्याएं हैं। देश में लाखों की संख्या में दिव्यांग हैं, जिन्हें एक सुविधाजनक व्यवस्था प्रदान की जानी चाहिए जो हर व्यक्ति को मदद करे।” विराली बताती हैं।

2011 को जनसँख्या के अनुसार देश में 2.68 करोड़ लोग दिव्यांग हैं, जिनमें से 20.3% ऐसे लोग हैं जिन्हें आने-जाने में तकलीफ होती है।

विराली का कहना है कि रेलवे को सुविधाजनक बना देने से महज दिव्यांगों का ही फायदा नहीं है बल्कि इससे ऐसे लोग भी लाभान्वित होंगे जो चोटिल हैं या वृद्ध हैं, जिन्हें चलने-फिरने में दिक्कतें होती हैं।

विराली सामान्य जनता को और संवेदनशील बनाना चाहती हैं। वे कहती है,
“लोगों में कई बार शिष्टाचार की कमी होती है, जो बदलनी चाहिए। सरकार का ये कर्तव्य है कि लोगों को संवेदनशील बनाए। इसके लिए अभियान चलाए जाएँ और विज्ञापन जारी कर ये बताया जाए कि कैसे दिव्यांगों के साथ व्यवहार किया जाना चाहिए। अभी बहुत कुछ है जो दिव्यांगों के हक़ में किया जाना चाहिए। “

अभी विराली को लोगों की जरूरत है, जो देश के शीर्ष नेताओं तक उसकी बात पहुँचाने में मदद करें। और उम्मीद है कि उसे लोगों का भरपूर समर्थन मिल रहा है।

अगर आप भी इस याचिका को अपना समर्थन देना चाहते हैं तो इस लिंक पर जाएँ।

मूल लेख – ऐश्वर्या सुब्रमनियम 


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें contact@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter (@thebetterindia) पर संपर्क करे।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X