परिस्थिति के आगे घुटने न टेक, संपन्न और शिक्षित उर्वशी ने खोला छोले कुलचे का ठेला!

उर्वशी ने कल्पना भी नहीं की थी कि एक फेसबुक पोस्ट उनके जीवन को बदल देगा| इनकी कहानी फेसबुक पर छा गयी और जल्दी ही इनके ठेले पर पूरे गुडगाँव से लोग आने लगे|

“आँधियों को जिद है जहाँ बिजलियाँ गिराने की

हमें भी जिद है वहीँ आशियाँ बनाने की …”

कुछ ऐसा ही जज्बा रखती हैं गुरुग्राम की उर्वशी यादव| इनका हौसला हर उस शख्स के लिए एक मिसाल है जो बुरे समय से हार मान लेते हैं| उर्वशी यादव ने ऐसे समय का न सिर्फ सामना किया बल्कि एक महिला हो कर भी समाज द्वारा बनाये गए दायरों में सिमटने की बजाय उस दायरे को बढाने की हिम्मत दिखाई |

र्वशी यादव एक संपन्न पंजाबी परिवार से हैं| अपनी स्नातक की शिक्षा पूरी करने के बाद इन्होंने इन्टरकॉन्टिनेंटल होटल, दिल्ली में फ्रंट ऑफिस एग्जीक्यूटिव के रूप में कुछ दिन काम किया | 2004 में, सेवामुक्त विंग कमांडर एन के यादव के पुत्र अमित यादव के साथ उर्वशी का विवाह हुआ | अमित उस समय एक बड़ी कंपनी में मेनेजर के रूप में काम कर रहे थे |

अगले कुछ सालो में उर्वशी और अमित के दो प्यारे से बच्चे हुए और सभी एक संयुक्त परिवार में खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे थे|

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अपने परिवार के साथ उर्वशी यादव

पर फिर इन खुशियों को जैसे तब एक ग्रहण सा लग गया जब 2010 में अमित क्रिकेट खेलते हुए घायल हो गए | आरम्भ में तो सभी ने इसे एक मामूली चोट मान कर इस पर ध्यान नहीं दिया पर धीरे धीरे अमित के पाँव का दर्द बढ़ने लगा जो बाद में इनके बर्दाश्त के बाहर होता चल गया | अमित के दांये  पाँव की नस दब गयी थी जिससे खून का प्रवाह रुक गया था|

उर्वशी बताती हैं, “ हम कई चिकित्सकों से मिले और अंत में हमें बताया गया कि मेरे पति को आगे चल कर शायद ‘हिप रिप्लेसमेंट ऑपरेशन’ करवाना पड़ेगा | पर फिर दवाईयों से ही उन्हें बहुत आराम मिल गया था इसलिए हमने आगे के बारे में ज्यादा  नहीं सोचा|”

समय बीतता गया| अमित और उर्वशी वापस अपने जीवन में व्यस्त हो गए| इस समय उर्वशी ने अपने करियर को फिर से शुरू करने की ठानी| चूँकि अब तक इनके बच्चे भी स्कूल जाने लगे थे, उर्वशी ने समय का भरपूर उपयोग करते हुए  2013 में मॉडर्न मोंटेसरी इंटरनेशनल टीचर’स ट्रेनिंग ( एम् एम् आई ) में डिप्लोमा लिया| इसके बाद ये किड-ज़ी प्री स्कूल मे शिक्षिका के रूप में नौकरी करने लगी | जीवन सामान्य रूप से चल ही रहा था कि एक दिन अचानक मई 2016 में अमित को एक और दुर्घटना का सामना करना पड़ा | इस बार भी इनके दांयें पाँव पर ही चोट आई और दाईं ऊँगली टूट गयी | अमित को करीब दो सप्ताह के आराम की सलाह दी गयी |

उर्वशी याद करते हुए बताती हैं, “ मैंने कभी भी ऐसी स्थिति की कल्पना नहीं की थी | पर उस एक फ्रैक्चर ने मेरे लिए जीवन के मायने बदल दिए | मैं लगातार यही सोच रही थी कि अगर अमित को हिप रिप्लेसमेंट करवाना पड़ा तो क्या होगा | मैं अपना भविष्य सुरक्षित करने के लिए कुछ करना चाहती थी |”

मन में चल रही इस बात को उर्वशी ने अपने के साथ बांटा और उन्हें बताया कि ये अपना काम छोड़ एक बेहतर विकल्प तलाशना चाहती हैं जहाँ ज्यादा पैसे मिले और इनका भविष्य भी सुरक्षित हो पाए | इन दोनों ने मिल कर कई व्यापारों को शुरू करने पर विचार किया जैसे , ब्यूटी पार्लर, बुटिक, रेस्तरा खोलना या फिर ट्यूशन पढाना | पर किसी में अधिक पैसों की आवश्यकता पड रही थी तो किसी में ग्राहकों को खीचना कठिन लग रहा था |

इसी के अगले दिन उर्वशी एक ‘छोले कुलचे’ के ठेले के पास से गुजरी और तभी एक विचार इनके मन में आया |

उर्वशी बताती हैं, “ मैं खाना पकाने की शौक़ीन रही हूँ और हमेशा से ही एक रेस्तरा खोलना चाहती थी | मैंने और मेरे पति ने इसपर विचार भी किया पर फिर इसे छोड़ दिया क्यूंकि हम इसमें पैसे लगाने के लिए एक और क़र्ज़ नहीं लेना चाहते थे | और इस बात की भी कोई गारंटी नहीं थी कि लोग हमारे रेस्तरां में आना चाहेंगे |”

उर्वशी उस ठेले वाले के पास रुकी और उससे उसके इस काम के बारे में पूछा| उन्होंने ठेले वाले से लागत से ले कर एक ठेला खरीदने तक और फिर आने वाले प्रॉफिट तक की जानकारी ली | इसी समय उर्वशी को समझ आया कि इस व्यापार में लागत सबसे कम और मुनाफा बहुत अधिक है |

अंत में उर्वशी ने निश्चय किया कि इनका खुद का छोले-कुलचे का एक ठेला होगा।

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उर्वशी का ‘छोले-कुलचे ठेला’

ये कहती हैं, “यदि आप अपना सामान सड़क पर बेच रहे हैं आपको कोई मार्केटिंग मेनेजर बनाने की आवश्यकता नहीं है | लोगो को भूख लगेगी तो वे आयेंगे |”

पर जब उर्वशी ने अपनी योजना अमित को बताई तो यह उसके लिए एक झटके- सा था | अमित ने कहा कि वे उर्वशी के साथ तो हैं पर फिर भी उन्हें डर है कि उर्वशी सामने आने वाले तकलीफ और तिरस्कार का सामना कर पायेगी या नहीं | पर उर्वशी ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे निर्णय ले चुकी है और ये सब वो अपने परिवार की भलाई के लिए कर रही हैं |.

अमित के पिता ने सबसे अधिक उर्वशी का साथ दिया और उन्हें यह कह कर प्रोत्साहित किया कि उसे इस बात की बिलकुल चिंता नही करनी चाहिए कि लोग क्या कहेंगे और  करना वही चाहिए जो खुद को सही लगता हो |

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उर्वशी अपने ठेले पर अपने श्वसुर रिटायर्ड विंग कमांडर एन के यादव के साथ

उर्वशी कहती हैं, “ एक शिक्षिका होने के नाते मैंने अपने  बच्चो को हमेशा सिखाया है कि कोई काम बड़ा या छोटा नहीं होता और अब समय था इस बात पर अमल करने का |”

उर्वशी ने जिस ठेले वाले से बात की थी उस से मदद ले कर ठेला, बर्तन और अन्य सामानों की खरीदारी की | 15जून 2016 को इन्होंने अपना ठेला गुड गाँव के सेक्टर 14 में लगाया और सड़क पर छोले कुलचे बेचना शुरू किया | पर एक औरत के लिए इस तरह काम करना आसान नहीं था | जैसा की डर था, लोग इन्हें परेशान करने और फब्तियां कसने से बाज़ नहीं आये | एक घटना का ज़िक्र करते हुए ये बताती है कि एक बार एक ग्राहक ने इनसे थोक आर्डर देने का आश्वासन दे कर इनका फ़ोन नंबर लिया और इसके बाद देर रात फ़ोन कर के परेशान करने का सिलसिला शुरू हो गया| तंग आ कर उर्वशी को अंत में पुलिस में एफ़.आई.आर करनी पड़ी तब जा कर मामला शांत हुआ |

पर इनके परिवार और दोस्तों का सहयोग इन्हें मिलता रहा | इनकी दुआओं ने तब असर किया जब करीब 15 दिन बाद ये सुनाली से मिली | सुनाली एक ब्लॉगर थी जिन्होंने इनकी कहानी  सुनी थी | उन्होंने जोर दिया कि वे उर्वशी की कहानी फेसबुक पोस्ट के द्वारा लोगों तक पहुचना चाहती है | उर्वशी ने कल्पना भी नहीं की थी कि एक फेसबुक पोस्ट उनके जीवन को बदल देगा |

ये कहानी फेसबुक पर छा गयी और जल्दी ही इनके ठेले पर पूरे गुड गाँव से लोग आने लगे |

उर्वशी बताती है, “ इस पोस्ट के बाद लोगों की सोच बदल गयी | वे मेरी तरफ अब आदर से देखने लगे | लडकियां मेरे पास आती, और कहती कि मैं उनके लिए एक प्रेरणा हूँ |”

इसके बाद अनेक अच्छे बदलाव हुए |  उर्वशी के पास ‘शार्प ग्रुप’ की  ओर से उनसे जुड़ने का प्रस्ताव आया कि अपने छोले कुलचे के लिए वे उनके द्वारा सप्लाई किया मटर ही इस्तेमाल करेंगी | इसके बाद ‘ग्राबेको’ कंपनी,जो कि स्वाभाविक रूप से सडनशील(बायो डिग्रेडेबल) खाने के बर्तनों को बनाती है, ने इन्हें प्लेट और कटोरियाँ सप्लाई करनी शुरू कर दी है |

अब ये अपने ठेले पर इन साफ़ बायो डिग्रेडेबल प्लेट का ही इस्तेमाल करती है|

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बायो डिग्रेडेबल बर्तनों का इस्तेमाल करती है उर्वशी

उर्वशी को अब पार्टीयों के लिए भी आर्डर मिलने लगे हैं |

अभी हाल में ‘नीयर बाय’ नामक एक स्टार्ट अप की पहली वर्षगाँठ पर इन्होंने कैटरिंग की थी |

स्वास्थ्य ठीक न रहने के कारण अब उर्वशी के पति ने भी नौकरी से इस्तीफा दे दिया है और अब इन्हें इनके ठेले पर मदद भी करते हैं|

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उर्वशी के पति, अमित ( बाएं ) ठेले पर मदद करते हुए |

अमित कहते हैं, “ मेरे माता पिता ने मुझे सिखाया है कि हमें कभी भी किसी को कोई काम करने से रोकना नहीं चाहिए | एक औरत को बाहर निकलकर काम नहीं करने देने की मानसिकता भी अब बदलनी चाहिए | मुझे अपनी पत्नी और उसके काम पर गर्व है|”

पर प्रचार के साथ-साथ जिम्मेदारियां भी आती है | उर्वशी को अपने काम की गुडवत्ता और खाने के स्वाद पर अधिक ध्यान देना पड़ता है क्यूंकि अब लोग उनके ठेले पर बहुत उम्मीद ले कर आते हैं | इन्हें अब कई सारे सवालों के जवाब देने पडते है और कई बार कई अफवाहों का सामना भी करना पड़ता है |

ये बताती हैं, “ किसी ने ये अफवाह फैला दी कि मैं 3 करोड़ के घर की मालकिन हूँ बल्कि सच ये है कि ये घर अमित के पिता का है| फिर एक और अफवाह सुनने में आई कि मेरे पास  2 एसयूवी कारें है | लोगो ने मुझे ये नसीहत भी देनी शुरू कर दी कि मुझे सड़क पर खाना बेचने की बजाय अपना घर और गाड़ियाँ बेच देनी चाहिए | पर आप बताईये कि ये सब बेचकर भी मैं उन पैसो से से हमेशा तो अपना घर नहीं चला सकती न? मुझे ऐसी बातों का अक्सर सामना करना पड जाता है |”

अपनी हर तकलीफ के बावजूद, उर्वशी अपने काम में दृढ़ता के साथ लगी हुई है | नोट बंदी के दौरान इन्हें कुछ मुश्किलें तो हुई पर फिर भी इसकी ओर इन्होंने अपना विचार सकारात्मक बना कर रखा | .

इन्होंने अपने ठेले पर Paytm लेना आरम्भ कर दिया है और अपने आस-पास के ठेले वालों को भी Paytm इस्तेमाल करना सिखा रही है|

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PayTm का इस्तेमाल करती हुई उर्वशी

वे कहती हैं, “यहाँ पर मैं अकेली पढ़ी लिखी महिला हूँ| ऐसे में अपने ज्ञान को दूसरों में बांटना मैं अपना फ़र्ज़ समझती हूँ |”

इन्होंने अपने ठेले के लाइसेंस के लिए आवेदन भी दे दिया है और उम्मीद है कि जल्द ही ये नगरनिगम द्वारा आवंटित नए सेक्टर के मार्केट में चली जायेंगी | इस नयी जगह के लिए इन्होंने एक नया सरप्राइज मेनू भी सोच रखा है |

उर्वशी कहती हैं, “मैं हमेशा से एक रेस्टोरेंट खोलना चाहती थी पर अपने खुद के पैसों से | मुझे मालूम है कि मेरे सपने बड़े हैं पर वो सच भी होंगे एक दिन |”

उर्वशी की 11 साल की बेटी है और 7 साल का बेटा है और इन दोनों को अपनी माँ पर गर्व है | वे अक्सर अपने स्कूल जाते हुए इनके ठेले की ओर इशारा कर अपने दोस्तों को दिखाते हैं |

अगर आप उर्वशी से पार्टी इत्यादि में सेवा लेने को इच्छुक  हैं तो इनके फेसबुक पेज पर इनसे सम्पर्क कर सकते हैं |

आप सेक्टर 14, गेट न. 5, एम् जी रोड, गुलाब रेस्तारा के सामने, गुडगाँव, हरियाणा में जा कर इनके ठेले पर छोले भठूरे का स्वाद ले सकते हैं|

मूल लेख – मानबी कटोच 


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