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बेटी को खोने के बाद भी, पकिस्तान से इस पिता ने भेजा था भारत को प्यार भरा ख़त!

पकिस्तान से भारत अपना इलाज कराने आई 13 साल की अबीहा ने 7 मई 2015 को दिल्ली के अपोलो अस्पताल में दम तोड़ दिया। पर जाने से पहले वो भारत से सिर्फ प्यार और अपनापन लेकर गयी और यही प्यार उसने भारत को भी दिया। पकिस्तान लौटकर अबीहा के पिता, इमरान ने भारत के नाम एक धन्यवाद पत्र लिखा।

लकीरे हैं तो रहने दो..
किसी ने रूठ कर गुस्से में शायद खेंच दी थी…
इन्ही को अब बनाओ पाला..
और आओ कबड्डी खेलते हैं..

लकीरे हैं तो रहने दो….

-गुलज़ार 

प्यार से अबीहा कहलाई जानेवाली 13 साल की नलैन रुबाब इमरान ने गुलज़ार साहब की लिखी इन पंक्तियों को ज़रूर पढ़ा और समझा होगा, तभी तो भारत और पकिस्तान के बीच खींची नफरत की इन लकीरों को मिटाकर वो पकिस्तान से भारत आई और हमे प्यार और अपनेपन का एक नया पाठ पढ़ा गई।

अबीहा की मौत के बाद उनके पिता हमीद इमरान ने पकिस्तान के एक अखबार, ‘द डॉन’ में भारत के नाम एक धन्यवाद पत्र लिखा।

“न तो मैं अपनी बेटी की मौत के दर्द को भुला सकता हूँ और न ही उसके इलाज के दौरान भारत से पाए हुए प्यार को।”

Abeeha, with her father Mr. Hamid Imran
अबीहा अपने पिता हमीद इमरान के साथ

अबीहा पाकिस्तान के चकवाल शहर की रहने वाली थी। उनका जिगर (liver) खराब हो चुका था। 2011 में डॉक्टरो ने उन्हें लीवर ट्रांसप्लांट की सलाह दी। चूँकि उनके पिता, इमरान उस वक़्त साऊदी अरबिया में नौकरी कर रहे थे इसलिए अबीहा का ऑपरेशन वही करवाया गया था।  पर 2015 में एक बार फिर से अबीहा को ऑपरेशन की ज़रूरत पड़ी। पकिस्तान में इस ऑपरेशन का खर्च करीब 50 लाख रूपये तक आना था इसलिए इमरान ने भारत का रुख किया।

यहाँ दिल्ली के अपोलो अस्पताल में अबीहा का ऑपरेशन होना था। पर दिक्कत ये थी कि इमरान भारत में किसीको नहीं जानते थे। ऊपर से यहाँ आने से पहले तक उन्होंने भारत को केवल एक दुश्मन देश के तौर पर ही जाना था। अबीहा की माँ भी गर्भवती थी इसलिए उन्हें भी देखभाल की ज़रूरत थी।

इमरान को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उन्हें क्या करना चाहिए। ऐसे में इमरान के एक दोस्त ने उन्हें भारत में रहने वाले रतनदीप सिंह कोहली के बारे में बताया और उनका पता भी दिया। रतनदीप सिंह कोहली, सरदार चेत सिंह कोहली के पोते है, जिन्होंने 1910 में चकवाल का सरकारी स्कूल बनवाया था। इसी स्कूल में इमरान और उनके दोस्त भी पढ़े थे।

विभाजन से पहले सरदार चेत सिंह कोहली का परिवार चकवाल में ही रहा करता था और उन्होंने यहाँ स्कूल और अस्पताल बनवाने के अलावा भी ऐसे कई नेक काम किये थे जिनकी वजह से वे आज भी चकवाल के लोगों के दिलो में बसते है। इसी वजह से जब कभी चकवाल के इस स्कूल में कोई बड़ा कार्यक्रम होता है तो चेत सिंह जी के पोते रतनदीप सिंह को ज़रूर बुलाया जाता है।

रतनदीप सिंह कोहली कहते है, “मैं 2010 में चकवाल गया था, जब मेरे दादाजी के बनाये स्कूल की सौवी वर्षगाठ थी। और फिर दुबारा 2012 में अपने परिवार को लेकर वहां गया था। वहां के लोगो ने और उस स्कूल के बच्चो ने हमें इतना प्यार और सम्मान दिया जिसे मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकता। मेरी पत्नी को तो वो ‘चकवाल की बहु’ कहकर बुलाते थे। हमारे बुजुर्गों के किये हुए अच्छे कामो के लिए वो लोग हमे शुक्रियां कहते नहीं थक रहे थे। ये बहुत ही भावुक क्षण था हमारे लिए।”

रतनदीप सिंह का पता मिलने पर इमरान अपनी पत्नी, अपनी बेटी- अबीहा और उस व्यक्ति को साथ लेकर गए जो अबीहा को लीवर देने वाला था। इन चारो का रतनदीप सिंह और उनकी पत्नी परमजीत कौर ने खुले दिल से स्वागत किया।

(From left) Mr. Imran, Mr. Kohli, Abeeha, Mrs. Kohli, Mrs. Imran
बांये से दांये – हमीद इमरान, रतनदीप सिंह कोहली, अबीहा, परमजीत कौर, साजिदा इमरान (अबीहा की माँ)

“जब इमरान हमारे घर आये तो हम लोग एक दुसरे से बिलकुल अनजान थे। पकिस्तान में रहने वाले हमारे एक पुराने दोस्त ने उन्हें हमारा पता दिया था। पर अबीहा पहले ही दिन से मेरी पत्नी के साथ बहुत घुल मिल गयी थी। जब मेरी पत्नी ने पूछा कि क्या वो अबीहा के लिए उसकी पसंद का खाना बना कर रोज़ अस्पताल भेज सकती है तो इमरान और उनकी पत्नी बेहद खुश हुए। अबीहा को अस्पताल का खाना बिलकुल पसंद नहीं था। ऐसे में उनके लिए ये बड़ी राहत थी,” रतनदीप सिंह बताते है।

परमजीत कौर बहुत प्यार से अबीहा के लिए खाना बनाने लगी। बाकि सभी सदस्यों के लिए भी वे अलग से खाना बनाती। मांसाहारी व्यंजनों के लिए मांस ख़ास तौर पर मुसलमान दुकानदारों से ही लाया जाता।

“मुझे पता था कि मुसलमान धर्म के लोग सिर्फ हलाल किया हुआ मांस ही खाते है। इसलिए मैं इस बात का ख़ास ध्यान रखता। जब मैंने इमरान को एक बार खाने की मेज़ पर बताया कि ये मांस हलाल किया हुआ है इसलिए वे बेझिझक खाए तो उन्होंने कहा, “भाईजान हमारे लिए तो आपके घर की हर चीज़ हक़ हलाल है”। उनके ये शब्द सुनकर मैं और मेरी पत्नी बेहद भावुक हो उठे थे,” कोहली बताते है।

16 मार्च 2015 को अबीहा का ऑपरेशन किया गया। पर तबियत बिगड़ने की वजह से अबीहा की माँ को उसे छोड़कर पकिस्तान लौटना पडा। पर वो इस तसल्ली के साथ भारत से जा रही थी कि यहाँ परमजीत कौर के रूप में अबीहा की दूसरी माँ मौजूद है।

Mrs. Sajjda Imran with the Kohlis while leaving from India

अगले कुछ दिन बेहद नाज़ुक थे। अबीहा की तबियत दिन पर दिन बिगडती चली जा रही थी। पर परमजीत हर पल उनके साथ होती। अब वे सिर्फ अबीहा के लिए ही नहीं बल्कि अपोलो अस्पताल में इलाज करा रहे बाकी पाकिस्तानी मरीजों के लिए भी खाना बनाकर लाने लगी। कुछ लोगो को तो उन्होंने घर पर ख़ास दावत भी दी।

“हम तीन महीने वहां रहे पर कोहली साहब और उनके परिवार ने हमे ये कभी महसूस नहीं होने दिया कि हम किसी अनजान मुल्क में है। हमे ऐसा ही लगता था जैसे हम चकवाल के ही किसी अस्पताल में अबीहा का इलाज करा रहे है,” इमरान बताते है।

पर तीन महीने तक मौत से जंग लड़ने के बाद आखिर 7 मई 2015 को अबीहा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

“वो कई बार कहती थी कि उसे भारत बहुत अच्छा लगता है। उसे ये अस्पताल और यहाँ के डॉक्टर्स भी बहुत अच्छे लगते है और जब वो बड़ी होगी तो इसी अस्पताल में डॉक्टर बन कर आएगी। मुझे उसकी बहुत याद आती है,” परमजीत कौर ने अपने आंसू रोकते हुए कहा।

Paramjit taking care of Abeeha in the hospital
परमजीत कौर अस्पताल में अबीहा के साथ

अस्पताल की नर्स से लेकर अबीहा की डॉक्टर तक हर कोई अबीहा की बातें बताता नहीं थकता। इमरान भी अस्पताल के सभी कर्मचारियों के बेहद शुक्रगुजार है जिन्होंने अबीहा की देखभाल में कोई कमी नहीं रखी।

भारत से जाते हुए भी भारतीय सेना के जवानो ने इमरान का दिल उस वक़्त जीत लिया जब वे अबीहा के शव को लेकर पकिस्तान वापस जा रहे थे।

“जब हमारा एम्बुलेंस बॉर्डर के पास आकर रुका तो एक सैनिक दौड़कर आया और अबीहा के शव पर उसने एक हरा कपड़ा ओढ़ा दिया ताकि उसे धुप न लगे।”

भले ही इमरान भारत से आँखों में आंसू लेकर लौटे पर उन्होंने भारत के रतनदीप सिंह कोहली और उनके परिवार के प्यार को कभी नहीं भुलाया।

“भले ही बंटवारे की वजह से हम एक दुसरे से बहुत दूर हो गए हो। पर 67 साल बाद भी इन दोनों मुल्को के आम इंसान के बीच का प्यार अब भी ख़त्म नहीं हुआ है। और एक दिन ये प्यार दोनों मुल्को के सियासती खेलो से ऊपर उठकर अपना रंग ज़रूर दिखायेगा,” – हमीद इमरान।

पकिस्तान में अपने घर से फ़ोन पर ‘द बेटर इंडिया’ से बात करते हुए इमरान ने कहा, “मैं अपनी किस्मत को मंज़ूर करता हूँ। वालिद होने के तौर पर अपनी बच्ची को बचाने के लिए मुझसे जो कुछ हो सकता था, जितना हो सकता था, मैंने किया। पर एक मुसलमान होने के नाते मैं ‘अल्लाह’ के हर फैसले को मंज़ूर करता हूँ।”

भारत के लोगो का शुक्रिया अदा करते हुए इमरान के पास शब्द कम पड़ रहे थे, “मैं चाहता हूँ कि लोग ये जाने कि आम हिन्दुतानी कितना नेक है। सिर्फ कोहली परिवार ही नहीं बल्कि अपोलो अस्पताल के हर डॉक्टर और नर्स का मैं शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने मेरी बच्ची का इतना ख्याल रखा, फिर चाहे वो डॉ. सुभाष गुप्ता हो या डॉ. सिब्बल।”

“मैं लोगो से ये भी कहना चाहता हूँ कि दोनों ही मुल्को की आम आवाम को सियासत से कोई लेना देना नहीं है। उनके अन्दर जो एक इंसानी जज्बा है वो किसी भी सियासती कडवाहट से कई ऊपर है,” उन्होंने कहा।

अबीहा की डायरी कोहली परिवार और अपोलो अस्पताल के डॉक्टरो के नाम लिखे कई शुक्रियानामे से भरी हुई थी। जन्नत की ओर रुखसती से पहले इस नन्ही सी परी ने अपनी डायरी में लिखा था, “I Love India” (“मुझे भारत से प्यार है “)।

A note from Abeeha's diary

 

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