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कहीं आप डिजिटल उपकरणों की लत के शिकार तो नहीं? जानिए और बचिए।

हम डिजिटल युग के जीव हैं। आभासी दुनियां हमारी जमीन है और इंटरनेट हमारी सांसे! टेक्नोलॉजी हमारे हाथ पैर बन गई है और स्मार्टफोन दादी-नानी की कहानियों वाले राजा का तोता। वो तोता जिसमें राजा की जान बसती थी। जो भी राजा को हानि पहुचाना चाहता था उसे उस राजा से युद्ध की आवश्यकता नहीं होती थी, वो तो बस उस तोते की खोज में लग जाता था।

म डिजिटल युग के जीव हैं। आभासी दुनियां हमारी जमीन है और इंटरनेट हमारी सांसे! टेक्नोलॉजी हमारे हाथ पैर बन गई है और स्मार्टफोन दादी-नानी की कहानियों वाले राजा का तोता। वो तोता जिसमें राजा की जान बसती थी। जो भी राजा को हानि पहुचाना चाहता था उसे उस राजा से युद्ध की आवश्यकता नहीं होती थी, वो तो बस उस तोते की खोज में लग जाता था।

 इस आभासी दुनियां में स्मार्टफोन वही तोता है जिसके खोने या चले जाने के ख्याल से ही हमारी जान निकल जाती है।

मनोविज्ञान विषय में एक शब्द प्रयोग होता है बर्न-आउट, जो अभी इस आभासी दुनियां में डिजिटल बर्न-आउट के रूप में सामने आने लगा है। बर्न-आउट एक क्रोनिक ऑक्यूपेशनल स्ट्रेस होता है जो इंसान की काम करने की सक्रियता को प्रभावित करता है। यानी जो व्यक्ति इससे प्रभावित होता है वो कार्य करने की क्षमता और सक्रियता खोने लगता है। डिजिटल बर्न-आउट के सन्दर्भ में इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि जब सारे काम टेक्नोलॉजी से किये जा रहे हैं तो आपकी काम करने की प्रैक्टिस और माइंडसेट दोनों बेअसर होते जा रहे हैं। इसलिए टेक्नोलॉजी पर निर्भरता बढ़ती जा रही है। एक लंबे वक़्त तक काम को हाथ न लगाना पड़े और वह काम अपनाप होता रहे तो आप उस काम को करने की क्षमता और उसमे रूचि, दोनों खोते जाते हैं।

 डिजिटल बर्न-आउट में आदीपन भी शामिल है। आप घंटो सोशल मीडिया पर खर्च करते हैं, लेकिन अंत में आपको भी पछतावा होता ही है कि कुछ मतलब नहीं निकला और ये सोशल मीडिया हमारा कीमती वक़्त कैसे निगल गया पता ही नहीं चला। लेकिन चूँकि इंटरनेट की घुसपैठ इतनी है कि आप कितने भी पछतावे के बाद इससे निकल नहीं पाते, अगले ही पल कोई नोटिफिकेशन की टोन आपकी डोरबेल बजाती है और आपको फिर उसी दुनियां में घुसा देती है।

अपने घर की डोरबेल भले ही आप कुछ वक़्त के लिए अनदेखा कर दें लेकिन इस डोरबेल को अनदेखा करने की हिम्मत न आप मीटिंग में कर पाते हैं न डाइनिंग टेबल पर! कई बार डांट भी खाने का जोखिम उठा लेते हैं और दोस्तों के साथ होने पर तो आप बिना झिझके खिंचे चले जाते हैं।

हाँ! हम समझते हैं कि ऐसा आप न तो जानबूझ कर करते हैं और न ही करना चाहते है। आदीपन ऐसा खिंचाव है कि आपको हथकड़ी में गिरफ्तार करके खींच ले जाता है। लेकिन आप यदि पछतावे की नाव पर सवार होकर पार उतरने की कोशिश कर रहे हैं और हिलोरों में अटके हैं, तो हम आपके लिए आज कुछ रिसर्च समाधान लाए हैं जो छोटे छोटे पुल का काम कर सकते हैं।

1. इंटरनेट डेटा और वाई-फ़ाई हमेशा ऑन न रखें

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ये उस डोरबेल की बिजली है जो उसे बजने की इजाजत देती है। ऐसा हम मोबाइल डाटा के साथ अक्सर करते हैं कि जरूरत के बाद ऑफ़ कर देते हैं लेकिन वाई-फाई हम प्रयोग के बाद भी ऑन ही किये रहते हैं। या कई बार अनलिमिटेड डाटा भी हमेशा ऑन किये रहने की आदत बन जाती है। ऐसा करने से बचें, ये आपको किसी भी वक़्त बुलाकर इन्टरनेट की दुनियां में खींच ले जाते हैं। और आपके काम करने और सोचने की शक्ति प्रभावित होती रहती है। ऐसा आपने भी महसूस किया होगा कि हम अनलिमिटेड इंटरनेट प्लान के साथ हमेशा ऐसा करते हैं और आजकल तो जिओ के साथ भ। तो कोशिश करें कि प्रयोग करने के बाद डेटा ऑफ़ क़र दें या सम्भव हो लिमिटेड डेटा का प्लान चुनें।

2. मल्टी-टास्किंग से बचें

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कई रिसर्च ये साबित कर चुकी हैं कि एक साथ कई काम करने की आदत से आपके काम करने की कुशलता पर असर पड़ता है, आप दो नावों में पैर रख कर बड़ी दूर तक नहीं जा सकते, तो जब आप डेस्क पर कोई काम कर रहे हों तो इंटरनेट पर रिप्लाई या कमेंट करते रहने से बचें, ये आपके काम की प्रोडक्टिविटी घटा सकता है। आपका फोकस भटकेगा और कई कामों में से एक भी सही तरीके से नहीं हो पाएगा। इसलिए बेहतर होगा कुछ काम करते वक़्त आप अपने ई-मेल्स, मेसेज और नोटिफिकेशन ऑफ़ कर दें।

3. डिजिटल दुनियां के बाहर नए शौक ढूंढे

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सिर्फ काम ही नहीं हमारा आराम या मनोरंजन का वक़्त भी टेक्नोलॉजी की कैद में है। हम आराम करते वक़्त पूरी तरह से इसके कब्जे में रहते हैं। इससे बचने के लिए बेहतर होगा हम टेक्नोलॉजी के बाहर अपने शौक ढूंढें, वो चाहे कोई मैदान का खेल हो सकता है या घर में ही बैठकर किताब पढ़ना, ड्रॉइंग बनाना या कैरम खेलना। आप अपने लिए दो-तीन ऐसे काम चुनिए जो टेक्नोलॉजी के प्रयोग मुक्त हों, अब वो सुबह की सैर हो सकती है या बाहर कोई योगा क्लास या कोई मैराथन दौड़।
ऐसी आदतें आपको न सिर्फ आदी होने से बचाए रखेंगीं बल्कि शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखेंगीं।

4. डिजिटल मीडिया प्रयोग की समय-सीमा निर्धारित करें

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डिजिटल स्पेस में रहना आज की जरूरत है लेकिन बने रहने की आदत समस्या का रूप ले लेती है। इससे बचने के लिए हम इसके प्रयोग का समय निर्धारित कर सकते हैं, जैसे दिन में तीन बार आप अपडेट लेने के लिए इंटरनेट पर जायेंगे और एक निर्धारित समय ही बिताएंगे। इसके साथ हम डिजिटल प्रयोग की सीमा निर्धारित करें जिससे हमारा डिजिटल इंगेजमेंट काबू में रहे, हम जरूरत के ही एप्लीकेशन प्रयोग करें ताकि ज्यादा नोटिफिकेशन हमें परेशान न करें, अगर सोशल मीडिया के एक प्लेटफॉर्म से ही आप अपने चाहने वालो तक पहुँच सकते है तो कई एप्लीकेशनों पर अकाउंट बनाने से बचें। इसके साथ साथ जिस प्लेटफॉर्म पर आपका अकॉउंट है उस पर जरूरत के हैंडल या अकॉउंट ही फॉलो करें, ऐसे पेज लाइक करें जो आपके प्रोफेशन से सम्बंधित जरूरी जानकारी देते हों। ऐसे लोगों और चैनलों को ही सब्सक्राइब करें जो आपके लिए बहुत ज्ञानवर्धक हों। इससे आप अपने वक़्त का बेहतर प्रयोग कर सकते हैं और अपने काम की चीजें भी नहीं छूटेंगीं।

इनके अलावा आप नीचे दिए जा रहे लिंक पर जाकर और बेहतर समाधान खोज सकते हैं-

  1. http://virtual-addiction.com/resources/
  2. http://www.helpguide.org/articles/addiction/smartphone-and-internet-addiction.htm
  3. http://www.psychguides.com/guides/internet-and-computer-addiction-treatment-program-options/

हम उम्मीद करते हैं कि आप इस वस्तविक दुनियां के जीव हैं आपकी उपस्थिति यहां ज्यादा रहे आभासी दुनियां हमारे लिए बेहतर है लेकिन बस जाने के लिए नहीं।

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