Placeholder canvas

इस राखी में लगे बीज को बोयियें और जुड़े रहिये इन्हें बनाने वाले किसानो और बुनकरों से !

ग्राम आर्ट प्रोजेक्ट ने खास राखियाँ तैयार की हैं जो उन्हें बनाने वाले कामगरों की कहानी कहती हैं। पहली बार ग्राहक उन किसानो से जुड़ेंगे जिन्होंने इस राखी के लिए कपास उगाया है और उन बुनकरों को जानेगे जिन्होंने इसके धागे बुने है।

परंपरा के अनुसार तो राखी भाई-बहन का बंधन है। लेकिन ये खास तरह की राखी उसे बनाने के हर चरण में लगे लोगों को उसे खरीदने वाले ग्राहकों से जोड़ेगी।

जो ब्रांडेड कपड़े आप पहनते हैं, कभी सोचा है वो जिस कपास से बना है वो कहाँ पैदा हुआ होगा? जो डिजाइनर कपड़े पहनकर आप अपनी शोभा बढ़ा रहे हैं वो किस बुनकर ने बुना है? आप अपने कपड़े इतने महंगे दामों पर खरीदते हैं, उनपर टैक्स भी देते हैं फिर क्यो कपास उगाने वाले किसान आत्महत्या करते हैं? भारत में पिछले दो दशकों में 2 लाख किसानों ने आत्महत्या की है। कपड़ा मिलों में काम करने वाले 1 लाख मजदूर अकेले मुम्बई में बेरोजगार हो गए। ये हालात तब हैं जब कपड़ा उद्योग देश में सबसे तेजी से बढ़ने वाले उद्योगों में से एक है।

हम में से कम ही लोग इन तथ्यों को जानते होंगे या कभी इनपर सवाल किया होगा। ये हमारे समाज की एक कुरूप तस्वीर है जहाँ वस्तुओं की पैदावार करने वाले समुदाय से उनका उपभोग करने वाले समुदाय के बीच गहरी खाई है। हम जो अन्न खाते हैं उसे उगाने वाले किसानों और जो कपड़े पहनते हैं उसे बुनने वाले बुनकरों के जीवनदशा के बारे में शायद ही कभी सोचते हों। उनके हित के बारे में सोचने की बजाय, दुर्भाग्य से समाज उनका शोषण ही करता है।

भारत कपास की पैदावार में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। कपास की दो प्रजातियों का जन्म ही पूर्व एशिआई क्षेत्र में हुआ है। लेकिन यहाँ पैदा होने वाला 95% कपास अमेरीकी जेनेटिकली मॉडिफाइड(GM) होता है। कपास की ये प्रजाती देसी नहीं होती है औऱ हमारी इकोलॉजी को भी क्षति पहुँचाती है। किसानों के लिए इन बीजों को खरीदने के लिए आर्थिक सीमाएं भी हैं। इन कपास के बीजों पर कुछ कंपनियों ने एकस्व (पेटेंट) प्राप्त किया हुआ है। इसलिए कपास की खेती के लिए किसानों को इन कंपनियों पर निर्भर रहना पड़ता है।

इसी तरह बुनकरों का भी काम छूटता जा रहा है। कपड़ा मिलों में इनकी जगह मशीनों ने ले ली है जो एक बार में 60 बुनकरों का काम कर सकती हैं।

अब हमारी जिम्मेदारी है कि हम बड़े बड़े ब्रांड के नाम के साथ साथ इन कपड़ों के पीछे के असल मेहनतकशों के नाम और काम को याद रखें।
इसी सन्दर्भ में ग्राम आर्ट प्रोजेक्ट ने खास राखियाँ  तैयार की हैं जो उन्हें बनाने वाले कामगरों की कहानी कहती हैं। पहली बार ग्राहक उन किसानो से जुड़ेंगे जिन्होंने इस राखी के लिए कपास उगाया है और उन बुनकरों को जानेगे जिन्होंने इसके धागे बुने है। इतना ही नहीं, इस राखी में एक बीज भी पिरोया गया है जिसे आप अपने आँगन में बोकर भाई बहन के रिश्ते को पल पल फलता फूलता देख सकते है।

तो आईये जानते है कैसे बनी है और किसने बनायी है ये अनोखी राखी –

राखियों को बनाने में इस्तेमाल होनेवाला कपास

Image for representational purpose. Source – Wikipedia

ये राखियाँ दो प्रकार के कपास से बनी हैं, एकेए-7 और आनंद 1

आनंद-1 कपास की नस्ल है जो महाराष्ट्र के नांदेड के किसान आनंदराव पाटिल-शिवालिकर ने तैयार किया है। इन्हीं बीजों से महाराष्ट्र के वर्धा के ग्राम सेवा मंडल के किसानो ने  कपास उगाया हैं।

अकोला जिले के किसानो  एकेए 7 के बीजों का प्रयोग करके कपास उगाया। और यही कपास आपकी राखी को बनाने में इस्तेमाल हुआ है।

कपास की कताई से पहले की प्रक्रिया

slide_2

मिक्सिंग से लेकर रोविंग की पूरी प्रक्रिया ग्राम सेवा मंडल, वर्धा में की गयी।

कपास के अलक की कताई वर्धा जिले की महिलाओं ने अम्बर चरखो पर की है। कपास के गोले सिम्पलेक्स मशीन की सहायता से बनाए गए और फिर चरखे पर उनकी कताई की गयी।

charkha

 

राखी के रंग

Untitled

वर्धा में खादी  संस्थान के मगन संग्रहालय के रंगाई यूनिट में प्राकृतिक रंगों से रंगकर आपकी राखी के रंगीन धागे तैयार किये गए हैं।

राखी की डिजाइन

IMG-20160805-WA0010

राखी के रंगीन धागे फिर पहुँचते हैं मध्यप्रदेश के परद्सिंगा गाँव की नूतन द्विवेदी के हाथों में। नूतन B.Sc द्वितीय वर्ष की छात्रा हैं। वो आसपड़ोस के गाँव खैरीस परद्सिंगा,संतूर, केलवड़ से करीब 50 महिलाओं को राखी बनाना सिखाती हैं।

नूतन बताती हैं, “इनमें से ज्यादातर महिलाएँ गृहणी हैं या खेतों में मजदूरी करती हैं। राखी से मिलने वाले थोड़े से पैसे भी इनको काम करने के लिए प्रेरित करते हैं। ये लोग इस बात से भी खुश हैं कि उन्हें अब अपने भाइयों के लिए बाजार से राखियाँ खरीदने की जरूरत नहीं है।“

राखी तैयार होने के बाद उसके बीच में भारतीय मूल का देसी बीज लगाया जाता हैं। ये बीज  दाल, सब्जी या कपास के है। इसे आप अपने आँगन में या कहीं भी खुली जगह पर बो सकते है।

और आखिर तैयार है आपके लिए पावन धागों की ये राखी!

IMG-20160805-WA0009

 

इन राखीयों को बनाने वालीं एक महिला सुमन हुमने कहती हैं, “ मेरे बच्चे मुझे इस काम से जुड़ा देखकर बहुत खुश होते हैं। मेरा लोगों से निवेदन है कि वो हमारी बनाई हुई राखियों को खरीदे जिससे आगे भी हमे और काम मिले।

इन राखियों की कीमत 20, 25 और 30 रूपए है। आप इन राखियों को मात्र रु.100 की अतिरेक राशी देकर भारत में कहीं भी भेज सकते है।

 

 

gramartproject@gmail.com पर  ई- मेल करके आप ये अनोखी राखियाँ मँगा सकते हैं। इस पर अधिक जानकारी के लिए ग्राम आर्ट प्रोजेक्ट की वेबसाइट पर जाएँ।

द बेटर इंडिया की ओर से आप सभी को रक्षाबंधन की ढेरो शुभकामनाएं !

मूल लेख मानबी कटोच द्वारा लिखित।


यदि आपको ये कहानी पसंद आई हो या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ बांटना चाहते हो तो हमें contact@thebetterindia.com पर लिखे, या Facebook और Twitter (@thebetterindia) पर संपर्क करे।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X