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विदेश में पढ़ रही दो भारतीय छात्राएं, मोबाइल फ़ोन के ज़रिये मुफ्त में सीखा रही है अंग्रेजी !

शिक्षा में एक छोटा सा बदलाव पीढियां बदल देता है। पर भारत में ज्यादातर अशिक्षित लोग आर्थिक कारणों से स्कूल छोड़ देते हैं और जाहिर है कि स्कूल छूटने के बाद पढ़ाई भी छूट जाती है। वही वक्त की मांग कुछ ऐसी है कि शहरों में रिक्शा चालक से लेकर छोटे-छोटे काम करने वालों तक अंग्रेजी बोलना और समझना सबके लिए जरुरी हो गया है। लेकिन इन्हें सिखाने का जिम्मा कौन उठाये? सिर्फ अंग्रेजी सीखने के लिए स्कूल वापस जाना इनके लिए संभव नहीं है और न ही कोचिंग क्लासेस की महँगी फीस देना। ऐसे में दो अंडरग्रेजुएट लडकियों की एक पहल, इनकी ज़िंदगी में रौशनी भर रहा है।

शिक्षा में एक छोटा सा बदलाव पीढियां बदल देता है। पर भारत में ज्यादातर अशिक्षित लोग आर्थिक कारणों से स्कूल छोड़ देते हैं और जाहिर है कि स्कूल छूटने के बाद पढ़ाई भी छूट जाती है। वही वक्त की मांग कुछ ऐसी है कि शहरों में रिक्शा चालक से लेकर छोटे-छोटे काम करने वालों तक अंग्रेजी बोलना और समझना सबके लिए जरुरी हो गया है। लेकिन इन्हें सिखाने का जिम्मा कौन उठाये? सिर्फ अंग्रेजी सीखने के लिए स्कूल वापस जाना इनके लिए संभव नहीं है और न ही कोचिंग क्लासेस की महँगी फीस देना। ऐसे में दो अंडरग्रेजुएट लडकियों की एक पहल, इनकी ज़िंदगी में रौशनी भर रहा है।
वासी गोयल और कस्तूरी शाह ने ‘हेलो सीखो’ नाम से अंग्रेजी सिखाने की कॉल सेवा शुरू की है। जिससे भारत के निम्न वर्गीय इलाकों में अंग्रेजी सीखने में बड़ी मदद मिल रही है।
“भारत में ऐसे बहुत बच्चे हैं जो अभी अंग्रेजी सीखने में पहली पीढ़ी हैं। उनके पास वे संसाधन नहीं हैं जिनके साथ हम बड़े हुए हैं। हम उनके स्कूल की पढाई को और बेहतर बना रहे हैं। ये सौभाग्य है कि हम उनके लिए पढाई का प्राइमरी माध्यम बन रहे हैं। लेकिन हमारा मकसद इन बच्चों को स्कूल में बनाये रखना है,” वासी गोयल कहती हैं।

वासी और कस्तूरी प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से अंडर ग्रेजुएट की डिग्री ले रही हैं। दोनों की मुलाकात दिल्ली में एक कार्यक्रम में हुई थी। और तब से उनकी जोड़ी ऐसी बनी कि आज इतिहास बन गयी।

Vaasvi (right) and Kasturi (left) being interviewed on Princeton University's All Nighter with Anna Aronson show.
वासी (दांये ) और कस्तूरी (बांये) प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के साक्षात्कार के दौरान
वासी याद करती हैं, “हम दोनों ने ये महसूस किया कि हमारी यूनिवर्सिटी में बहुत से ऐसे संसाधन हैं जिन्हें हम पढाई के साथ प्रयोग करके, भारत को दुनियाँ से जोड़कर परिवर्तन ला सकते हैं।”
अक्टूबर 2013 में, वासी और कस्तूरी ने अपने इस अनूठे विचार पर काम करना शुरू कर दिया।
“हमने एक लिस्ट बनाई जिसमें हमारे सामने आने वाली समस्याएं थीं, जिनका हमें सामना करना था। उस वक़्त हमें ये एहसास हुआ कि हम दोनों सचमुच शिक्षा के क्षेत्र में कुछ करना चाहते हैं। फिर हमने सोचा कि ऐसा कुछ किया जाए जो सबके लिए संभव हो, और ऐसा एक टूल (साधन) हो जिसे हम अपने आइडिया के लिए माध्यम बना सकते हैं,” वासी बताती हैं
बहुत सोचने के बाद दोनों मोबाइल फोन के प्रयोग के लिए तैयार हो गयीं। वासी उस दौरान बच्चों की शिक्षा के लिए काम करने वाली एक गैर सरकारी संस्था के साथ काम करती थीं। वे बताती हैं, “ये आइडिया बच्चों के साथ कम्युनिटी में रहने और उन्हें जरूरत के वक़्त मोबाइल से जुड़े रहने के मेरे पर्सनल एक्सपीरिएंस से आया। मैंने देखा कि मोबाइल फोन इस वक़्त सबके पास हैं। और यही हमारा बेहतर माध्यम हो सकता है।”
मोबाइल फोन के प्रयोग की सहमति बनने के बाद 2014 तक दोनों ने बिजनेस प्लान तैयार कर लिया। ताकि उन्हें प्रोजेक्ट के दौरान जरूरत भर का फंड मिल जाए। अगस्त 2014 में “हैलो सीखो” पश्चिमी दिल्ली के झोपड़पट्टी इलाके में शुरू हो गया। फिर अगले साल अगस्त 2015 में मुंबई के धारावी क्षेत्र में शुरू हुआ।
आज “हैलो सीखो” में कुल छह लेवल तक के 65 पाठ हैं। हर पाठ 3-4 मिनट का है। जिसमें आसान हिंदी के माध्यम से अंग्रेजी सिखाई जाती है। इसे बहुत आसान और प्रयोग में यूजर फ्रेंडली बनाया गया ताकि ऐसे लोगों को ज्यादा मशक्कत न करनी पड़े जो तकनीकी से नहीं जुड़े है।

‘हैलो सीखो’ से पढ़ने के लिए बड़ी आसानी से टोल फ्री नंबर 1800-3000-0881 डायल कर, अपने स्तर का पाठ चुनकर पढ़ा जा सकता है। ये ठीक उसी तरह है जैसे हम अपने मोबाइल से कस्टमर केयर पर कॉल करके बटन दबाकर सेवाएं लेते हैं।

Vaasvi promoting the service in December 2015.
वासी -भारत में इस सेवा के बारे में जागरूकता फैलाते हुए
वासी बताती हैं कि “कोई भी कॉल करके अंग्रेजी के वर्णमाला से लेकर रोजमर्रा की जरूरत के शब्द और बोलने के लिए ग्रामर के साथ साथ टेंस भी सीख सकता है। शुरुआत में इसके माध्यम से तीसरी कक्षा से लेकर नौवीं कक्षा के बच्चों को टारगेट किया गया था, लेकिन देखते देखते बड़े लोग भी इससे जुड़ते गए। “
अपनी रेगुलर पढाई के दौरान ही दोनों ने इस प्रोजेक्ट पर काम किया। पढाई से वक़्त बचाकर दोनों ने क्लासेस के बीच-बीच में, इंटर्नशिप और छुट्टियों के दिनों में कड़ी मेहनत से कंटेंट तैयार किया।
कस्तूरी बताती हैं, “हमने एक हफ्ते साथ-साथ बैठकर काम किया और फिर करीब आठ हफ्ते अलग-अलग अकेले काम करते रहे। चुनौतियाँ कम नहीं थीं। हम भारत से बहुत दूर बैठकर भारत के लिए काम कर रहे थे। इसलिए हमें अच्छा खासा वक़्त लगाना पड़ा। इसी दौरान हमने ये सीखा कि जब आप किसी काम की धुन में लग जाते हैं और उसे दिल से करना चाहते हैं तो फिर आप उसके लिए वक़्त निकाल ही लेते हैं। यही हमारे साथ हुआ।”

‘हैलो सीखो’ में अब तक तकरीबन 1,65,000 कॉल आ चुके हैं।

Learn English on Phone
“ज्यादातर कॉल 3-4 मिनट के होते हैं। इससे हमें पता चलता है कि कॉलर हर दिन अपना 3-4 मिनट का अध्याय पूरा कर रहा है। हमारे पास बार बार कॉल करने की संख्या 50 बार है। इसका मतलब है कि कॉलर अपने ज्यादातर अध्याय पढ़ चुके हैं,” वासी बताती हैं।

भविष्य में इसे और बढ़ाने की योजना है। ‘हैलो सीखो’ का उद्देश्य न सिर्फ़ ‘यूजर नेटवर्क’ बढ़ाना है बल्कि इसमें कोर्स कैरिकुलम भी बढ़ाने की योजना है।

Kasturi distributing flyers in Dharavi. July 2015.
कस्तुरी – धारावी के बच्चो को ‘हैलो सीखो’ के बारे में समझाते हुए

Children in Dharavi using the Hello, Seekho service

धारावी में रहने वाले बच्चे , हैलो सीखो सेवा का उपयोग करते हुए

वासी कहती हैं, “हमें लगता है कि भारत में अंग्रेजी सीखना एक नौकरी और उससे आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए भी जरुरी है। इसलिए हम ऐसे लोगों की तलाश में हैं जो हमारे साथ काम करते हुए न सिर्फ़ अंग्रेजी सिखाने में सहायक हो बल्कि हैलो सीखो से उनकी अपनी जॉब अपॉर्च्युनिटी पर भी सकारात्मक प्रभाव डाले।”
इन दोनों की इस पहल में आप भी शामिल हो सकते हैं। इस लिंक पर जाकर आप भी हैलो सीखो का हिस्सा बन सकते हैं। आप इनसे इनके फेसबुक पेज पर भी संपर्क कर सकते है।

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