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दिल्ली के स्ट्रीट फ़ूड को कुछ इस तरह सुरक्षित बना रही है ये संस्था!

क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है, कि राह चलते किसी स्ट्रीट फ़ूड पर नज़र पड़ते ही आपकी भूख बढ़ गयी हो, पर आपने उस ठेले वाले के गंदे हाथ देखकर अपना इरादा बदल लिया और आगे बढ़ गए हों? ऐसी परेशानी से यह दुकानवाले अक्सर गुज़रते हैं, और इसी को दूर करने के लिए ' वन रूपी फाउंडेशन' नाम की संस्था ने इन लोगो में दस्ताने (gloves) बांटने की मुहीम चलायी है।

क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है, कि राह चलते किसी स्ट्रीट फ़ूड पर नज़र पड़ते ही आपकी भूख बढ़ गयी हो, पर आपने उस ठेले वाले के गंदे हाथ देखकर अपना इरादा बदल लिया और आगे बढ़ गए हों? ऐसी परेशानी से यह दुकानवाले अक्सर गुज़रते हैं, और इसी को दूर करने के लिए ‘ वन रूपी फाउंडेशन’ नाम की संस्था ने इन लोगो में दस्ताने (gloves) बांटने की मुहीम चलायी है।

‘न रूपी फाउंडेशन’ के संस्थापको में से एक, तरुण भरद्वाज बताते हैं, ” हमने कई ठेले वालों को देखा जो बिना दस्तानो के खाना बना कर बेच रहे थे। तभी हमने सोचा कि इन्हें अन्य रेस्तरां के रसोइयो द्वारा उपयोग में लाये जाने वाले दस्ताने दिए जाएँ, जिससे यह अपने काम को स्वच्छता पूर्वक कर सकें।”

यह संस्था अन्य कई प्रोजेक्ट पर काम कर चुकी है। जैसे- पेड़ लगाने की मुहीम, गरीब बच्चो के बीच कपडे वितरित करना, झुग्गियो में दंत चिकित्सा के कैंप लगवाना, पुस्तकालयों में किताबें दान करवाना, कैंसर के रोगियों के लिए रक्दान शिविर लगवाना आदि।

तरुण और उसके मित्र अरविन्द वत्स ने इस संस्था की शुरुआत नौ महीने पहले की थी। इसका उद्देश्य दान को इच्छुक लोगों से प्रतिदिन 1 रुपये ले कर ज़रुरतमंदो के जीवन में बदलाव लाना है।

दस्ताने बांटने की यह मुहीम अभी दिल्ली के रोहिणी में चल रही है। तरुण अपने मित्रों की मदद से इन्हें दिल्ली के अन्य इलाकों में भी बंटवाने की कोशिश कर रहें हैं।

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हर ठेले वाले को 20 जोड़ों के हिसाब से इन्होने अब तक 2000 दस्ताने बांटें हैं। 15 दिनों बाद वे वापिस इनके पास जा कर स्थिति की जानकारी लेंगे फिर इसी आधार पर वे इस मुहीम को आगे बढ़ाएंगे।

तरुण कहते हैं, ” यह स्वच्छता और रोग नियंत्रण की और एक बड़ा कदम होने के साथ-साथ, इन दुकानदारों की आय में वृद्धि का भी कारण बन सकता है। कई लोग जो सिर्फ इस कारण इनके हाथ का खाना पसंद नहीं करते थे क्यूंकि इनके पास दस्ताने नहीं थे, अब वे भी निश्चिन्त हो कर बाहर का खाना खा सकेंगे।”

तरुण मानते हैं कि शुरुआत में कई दुकानदार इन दस्तानो को पहनने के इच्छुक नहीं थे। वे बताते हैं, ” हमने उनमे से एक से इस दस्ताने को पहनकर बर्फ का गोला बनाने को कहा। उसने किया और हमने उसे बडे चाव से खाया। ऐसा करने से उस दुकानवाले के अन्दर आत्मविश्वास आया और वह दस्ताने इस्तेमाल करने लगा।”

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मूल लेख –  Tanaya Singh

Featured image credit: images.mid-day.com

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